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उदीरणाकरण ]
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विशेषार्थ
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करके तेतीस सागरोपम की आयु वाला देव होकर और वहां से च्युत हो मनुष्यभव धारण कर उत्कृष्ट संयम काल के अंत में आहारकशरीर और आहारक- अंगोपांग की जघन्य स्थिति उदीरणा करता है । • संसार परिभ्रमण द्वारा चार बार प्रेम अर्थात् मोहनीय कर्म को उपशमित करने के पश्चात् मिथ्यात्व को क्षय किया, यह मिथ्यात्व पद उपलक्षण रूप है, इसलिये मिथ्यात्व से सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व को भी ग्रहण करके उनको भी क्षय किया । अर्थात् वह क्षायिक सम्यग्दृष्टि हुआ और क्षायिक सम्यग्दृष्टि होकर तेतीस सागरोपम की स्थिति वाला देव हुआ। तत्पश्चात् उस देवभव से च्युत होकर मनुष्यभव में उत्पन्न हुआ और आठ वर्ष के अनन्तर संयम को धारण किया और प्रमत्तभाव में आहारकसप्तक को बांधा। तत्पश्चात् देशोन पूर्व कोटि तक संयम का परिपालन किया। तब देशोन पूर्व कोटि के अन्त में आहारकशरीर उत्पन्न करते समय 'सुतणू' अर्थात् आहारकशरीर उवंगति-आहारक-अंगोपांग तथा यहां बहुवचन का प्रयोग होने से आहारकबंधनचतुक और आहारकसंघात का ग्रहण भी समझना चाहिये । इस प्रकार आहारकसप्तक की जघन्य स्थिति - उदीरणा करता है । यहां मोहकर्म का उपशम करता हुआ नामकर्म की शेष प्रकृतियों का स्थितिघात आदि के द्वारा बहुत स्थितिसत्व का घात करता है तथा देवभव में अपवर्तनाकरण के द्वारा उनका अपवर्तन करता है । तत्पश्चात् आहारकसप्तक के बंधकाल में अल्प स्थिति सत्व को ही संक्रमाता है। इसी कारण यहां चार बार मोह को उपशमित किया इत्यादि पदों को ग्रहण किया है । आहारकसप्तक का स्थिति सत्व देशोन पूर्व कोटि प्रमाण काल के द्वारा बहुत अधिक क्षय को प्राप्त हो जाता है, यह बताने के लिये देशोन पूर्व कोटि पद को ग्रहण किया गया है । तथा
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छउमत्थखीणरागे, चउदस समयाहिगालिगठिईए । सेसाणुदीरणंते, भिन्नमुहुत्तो ठिई कालो ॥ ४२ ॥
शब्दार्थ – छउमत्थखीणरागे छद्मस्थ क्षीणराग, मोह, गुणस्थान में, चउदस - चौदह, समयाहिगालिगठिईए समयाधिक आवलिका प्रमाण स्थिति, सेसाण शेष प्रकृतियों की, उदीरणंते- अन्त में उदीरणा होती है, भिन्नमुहुत्तो – अन्तर्मुहूर्त, ठिई कालो स्थिति काल ।
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गाथार्थ चौदह प्रकृतियों की समयाधिक आवलिकाप्रमाण स्थिति शेष रह जाने पर छद्मस्थ क्षीणमोह गुणस्थान में जघन्य स्थिति उदीरणा होती है तथा शेष प्रकृतियों की सयोगिकेवलि गुणस्थान के अंत में अन्तर्मुहूर्त स्थिति काल शेष रह जाने पर जघन्य स्थिति - उदीरणा होती है ।
विशेषार्थ छद्मस्थ क्षीणमोह गुणस्थान ज्ञानावरणपंचक, चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवल दर्शनावरण रूप दर्शनावरणचतुष्क और अन्तरायपंचक इन चौदह प्रकृतियों की जघन्य स्थितिउदीरणा समयाधिक आवलिका प्रमाण स्थिति शेष रह जाने पर होती है तथा शेष प्रकृतियों की अर्थात् मनुष्यगति