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[ कर्मप्रकृति
जो सयोग्यन्तिक चौरानवै प्रकृतियां पहले कहीं गई हैं, उनके जघन्य स्थितिसंक्रम के स्वामी चरम अपवर्तना में वर्तमान वे ही सयोगी केवली होते हैं।
शेष प्रकृतियों के जघन्य स्थितिसंक्रम के स्वामी का कथन करने के लिये गाथा में सेसगाणं इत्यादि पद कहा है। जिसका आशय यह है कि शेष अर्थात् स्त्यानर्द्धित्रिक नामत्रयोदशक, आठ मध्यम कषाय, नव नोकषाय और संज्वलन, क्रोध, मान, माया इन छत्तीस प्रकृतियों का क्षपण क्रम से अर्थात् जिस क्रम से उनका क्षय होता है उस परिपाटी से पल्प म के असंख्यातवें भाग आदि प्रमाण वाले चरम संक्षोभण में वर्तमान अनिवृत्तिबादरसंयत जघन्यस्थिति के संक्रम का स्वामी होता है।
'वेयगोवेदेत्ति' वेद का वेदक जीव वेद की जघन्य स्थिति के संक्रम का स्वामी है। जिसका आशय यह है कि पुरुषवेद के उदय में वर्तमान अनिवृत्तिबादरसंपराय संयत पुरुषवेद का, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद के उदय में वर्तमान अनिवृत्तिबादरसंपराय संयत नपुंसकवेद का चरम संक्रम करता हुआ जघन्य स्थितिसंक्रम का स्वामी जानना चाहिये। अन्य वेद से क्षपकश्रेणी पर चढे हुये जीव के अन्य वेद का जघन्य स्थितिसंक्रम नहीं पाया जाता है। वह इस प्रकार जानना चाहिये -
जिस वेद से जीव क्षपकश्रेणी पर आरोहण करता है, उस वेद की स्थिति से बहुत से पुद्गल परमाणु उदीरणा, अपवर्तना आदि के द्वारा झड़ते हैं। इसलिये यद्यपि नपुंसकवेद से क्षपकश्रेणी पर चढ़ा हुआ जीव स्त्रीवेद और नपुंसकवेद इन दोनों का युगपत् क्षय करता है, तथापि नपुंसकवेद का ही उसके जघन्य स्थितिसंक्रम पाया जाता है, स्त्रीवेद का नहीं। क्योंकि उसके उस समय स्त्रीवेद के उदय और उदीरणा का अभाव है। स्त्रीवेद से क्षपकश्रेणी को प्राप्त हुआ जीव नपुंसकवेद के क्षय के अनन्तर अन्तर्मुहूर्तकाल से स्त्रीवेद का क्षय करता है
और इतने काल की उदय और उदीरणा के द्वारा बहुत सी स्थिति टूट जाती है। यद्यपि पुरुषवेद से भी क्षपक श्रेणी को प्राप्त हुये जीव के इतना काल पाया जाता है, तथापि स्त्रीवेद सम्बंधी उदय और उदीरणा उसके नहीं होती हैं। इसलिये स्त्रीवेद से क्षपकश्रेणी को प्राप्त जीव के ही स्त्रीवेद का जघन्य स्थितिसंक्रम होता है, शेष वेद का नहीं तथा पुरुषवेद से क्षपकश्रेणी को प्राप्त जीव हास्यादिषट्क के अनन्तर पुरुषवेद का क्षय करता है और अन्य वेद से क्षपकश्रेणी चढ़ा हुआ जीव हास्यादि षट्क के साथ पुरुषवेद का क्षय करता है। उदय हुये वेद की उदीरणा भी प्रवर्तित होती है। जिससे बहुत सी स्थिति टूट जाती है। इसलिये पुरुषवेद से श्रेणी पर आरूढ़ पुरुषवेद के पुरुषवेद की ही जघन्य स्थिति का संक्रम होता है अन्य का नहीं और इसके साथ ही स्थितिसंक्रम का विवेचन पूर्ण होता है।
१. उत्कृष्ट, जघन्य स्थिति, यत्स्थिति प्रमाण एवं स्वामी आदि का सरलता से बोध कराने वाला प्रारूप परिशिष्ट में देखिये।