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[ कर्मप्रकृति
___ शब्दार्थ – ईसाणागय - ईशानदेवलोक से आकर, पुरिसस्स – पुरुष, इत्थियाए - स्त्री में, य - और, अट्ठवासाए - आठ वर्ष, मासपुहुत्तप्भहिए – मासपृथक्त्व से अधिक, नपुंसगे - नपुंसकवेद, सव्व संकमणे - सर्व संक्रमण काल में।
गाथार्थ – जो गुणितकांश जीव ईशान देवलोक से आकर पुरुष या स्त्री होकर आठ वर्ष और मासपृथक्त्व से अधिक काल बिताकर क्षपकश्रेणी का आरोहण करने वाला है, उसके नपुंसकवेद का क्षय करते समय सर्वसंक्रम काल में नपुंसकवेद का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है।
विशेषार्थ – गुणितकांश ईशानस्वर्ग का देव संक्लेश परिणाम से एकेन्द्रिय के योग्य नपुंसकवेद को बार-बार बांधकर उस ईशानस्वर्ग से च्युत होता हुआ स्त्री या पुरुष हुआ। तत्पश्चात् मास पृथक्त्व से अधिक आठ वर्षों के व्यतीत होने पर कर्मक्षपणा के लिये उद्यत हुआ, उस क्षपक के नपुंसकवेद का क्षय करते हुए चरम संक्षोभ में सर्वसंक्रम के द्वारा संक्रमण करने पर नपुंसकवेद का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है। तथा
इत्थीए भोगभूमिसु, जीविय वासाणऽसंखियाणि तओ ।
हस्सठिई देवत्ता, सव्वलहुं सव्वसंछोभे॥८५॥ शब्दार्थ – इत्थीए – स्त्रीवेद का, भोगभूमिसु - भोगभूमि में, जीविय – जीवित रहकर, वासाण – वर्ष, असंखियाणि - असंख्यात, तओ - वहां से, हस्सठिई – जघन्य स्थिति वाला, देवत्ता- देव होकर, सव्वलहुं – सर्व लघु (अतिशीघ्र) सव्वसंछोभे – सर्व संक्षोभ करता हुआ (सर्व संक्रम रूप अन्त्य प्रक्षेप करता हुआ)।
गाथार्थ – गुणितकांश जीव भोगभूमि में उत्पन्न हो कर बार बार स्त्रीवेद को बांधता हुआ असंख्यात वर्ष तक जीवित रह कर और वहाँ से मर कर अल्प स्थिति वाला देव हो कर और वहाँ से च्युत हो कर मनुष्यभव में अतिशीघ्र क्षपकश्रेणी प्रारंभ कर स्त्रीवेद का सर्वसंक्रमरूप अन्त्य प्रक्षेप करता हुआ स्त्रीवेद का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम करता है।
विशषार्थ – भोगभूमि में बारबार असंख्यात वर्षों तक स्त्रीवेद को बांधकर वहां से पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण आयु के बीतने पर अकाल मृत्यु से मरकर दस हजार वर्ष प्रमाण अल्प स्थिति की देव आयु को बांधकर देव रूप से उत्पन्न हुआ। वहां पर भी उस स्त्रीवेद को बार बार बांधकर अपनी आयु के अंत में मनुष्यों में किसी एक वेद सहित उत्पन्न हुआ। तब उस स्त्रीवेद के क्षपण के समय सर्वसंक्रम करते हुए उसके स्त्रीवेद का उत्कृष्ट प्रदेश संक्रम होता है।
यहां पर इस प्रकार ही वेद का उत्कृष्ट आपूरण (बहुत प्रदेशों का संचय) और उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम केवलज्ञान के द्वारा जाना एवं देखा गया है, अन्यथा नहीं, यही युक्ति यहां पर अनुसरण करना चाहिये, अन्य