________________
उद्वर्तना- अपवर्तनाकरण ]
[ १३७
अधस्तनी स्थिति को उद्वर्तित करता है तब आवलिका का उल्लंघन कर उपरितन आवलिका के असंख्यातवें भाग में निक्षेप करता है और जब दूसरी अधस्तनवर्ती स्थिति का उद्वर्तन करता है तब समयाधिक असंख्यातवें भाग में निक्षेप करता है । इस प्रकार से उद्वर्तन और निक्षेप जानना चाहिये । अब अल्पबहुत्व का कथन करते हैं जघन्य अतीत्थापना और जघन्य निक्षेप, यह दोनों ही (वक्ष्यमाण पदों की अपेक्षा) सबसे कम हैं और परस्पर तुल्य हैं। क्योंकि ये दोनों ही आवलिका के असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । इनसे उत्कृष्ट अतीत्थापना असंख्यात गुणी है । क्योंकि वह उत्कृष्ट अबाधा प्रमाण है। उससे भी उत्कृष्ट निक्षेप असंख्यात गुण है । क्योंकि वह समयाधिक आवलिका और अबाधा से हीन संपूर्ण कर्मस्थिति प्रमाण है। उससे भी सम्पूर्ण कर्मस्थिति विशेषाधिक है ।
1
जिसका प्रारूप इस प्रकार है
नाम
जघन्य अतीत्थापना
जघन्य निक्षेप
क्रम
१.
२.
३.
४. उत्कृष्ट निक्षेप
उत्कृष्ट अतीत्थापना
अल्पबहुत्व
सर्वस्तोक परस्पर
सर्व स्तोक तुल्य
पूर्व से असंख्यातगुणी
पूर्व से असंख्यातगुणा
प्रमाण
आवलि के असंख्यातवें
अब स्थिति अपवर्तना बतलाते हैं
भाग प्रमाण
उत्कृष्ट अबाधा प्रमाण समयाधिक आवलिका प्रमाण और अबाधा से हीन सम्पूर्ण कर्मस्थिति प्रमाण
५.
सम्पूर्ण कर्मस्थिति
पूर्व से विशेषाधिक
इस प्रकार स्थिति की उद्वर्तना का कथन जानना चाहिये ।
स्थिति अपवर्तना
उव्वट्टंतो य ठिई, उदयावलिबाहिरा ठिइविसेसा । निक्खिवइ तइय भागे, समयहिए, सेसमइवईय ॥ ४ ॥ वड्ढइ तत्तो अतित्थावणा उ जावालिगा हवइ पुन्ना । ता निक्खेवो समया - हिगालिग दुगूण कम्मठिई ॥ ५ ॥
शब्दार्थ – उव्वट्टंतो य ठिङ्गं – स्थिति की अपवर्तना करता हुआ, उदयावलिबाहिरा उदयावलि के बाहर के, ठिइविसेसा – स्थितिविशेषों को, निक्खिवइ - निक्षेप करता है, तइय १. इसका प्रारूप परिशिष्ट में देखिये ।