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उद्वर्तना - अपवर्तनाकरण 1
सर्वत्र ही आवलिका मात्र स्थितिगत स्पर्धक प्रमाण रहती है ।
उत्कृष्ट निक्षेप का विषय कितना है ?
प्रश्न
उत्तर बंधावलिका के व्यतीत होने पर समयाधिक आवलिका और अबाधागत स्पर्धकों । वे इस प्रकार समझना चाहिये कि
अबाधागत स्पर्धक उद्वर्तित नहीं किये जाते हैं और उद्वर्त्यमान समय मात्रस्थितिगत स्पर्धकों को वहां पर (उद्वर्त्यमान समयगत स्पर्धकों में) निक्षिप्त नहीं करता है । आवलिका मात्रगत स्पर्धक तो अतीत्थापना रूप हैं, इसलिये बंधावलिका के व्यतीत होने पर समयाधिक आवलिकागत स्पर्धकों को और अबाधांगत स्पर्धकों को छोड़ कर शेष सभी स्पर्धक निक्षेप के विषय होते हैं ।
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को छोड़ कर शेष सभी स्पर्धक निक्षेप के विषय होते
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अब अल्पबहुत्व बतलाते हैं.
१. जघन्य निक्षेप सबसे अल्प है। क्योंकि उसके स्पर्धक आवलिका के असंख्यातवें भागगत स्पर्धक प्रमाण हैं ।
३. अतीत्थापना से उत्कृष्ट निक्षेप अनन्त गुणा है ।
४. उत्कृष्ट निक्षेप से भी सम्पूर्ण अनुभाग विशेषाधिक है ।
इस प्रकार अनुभाग की उद्वर्तना जानना चाहिये ।
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२. उससे अतीत्थापना अनन्तगुणी है, क्योंकि निक्षेप विषयक स्पर्धकों से आवलिका प्रमाण स्थितिगत स्पर्धक अनन्तगुणित हैं । इस प्रकार सर्वत्र ही स्पर्धकों की अपेक्षा अनन्त गुणता जानना चाहिये ।
अनुभाग अपवर्तना
अब अनुभाग अपवर्तना का कथन करते हैं
अनुभाग अपवर्तना बताने के लिये गाथा में ' एवं उव्वट्टणाईओ' पद दिया है। जिसका यह है कि उद्वर्तना के कथन की तरह अनुभाग - विषयक अपवर्तना भी कहना चाहिये । केवल अन्तर इतना है कि उसे आदि से प्रारम्भ करके कहना चाहिये। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है कि
१. इसका प्रारूप परिशिष्ट में देखिये ।
२. क्योंकि समयाधिक दो आवलिका (बंधावलिका और अतीत्थापना) और अबाधा को छोड़कर के शेष स्पर्धक अनन्तगुणे हैं ।
३.
. समयाधिक अतीत्थापनावलिकागत स्पर्धकों सहित होने के कारण विशेषाधिक हैं।