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विकलेन्द्रियों के उदीरणास्थान
द्वीन्द्रिय जीवों के छह उदीरणास्थान होते है । यथा
छप्पन और सत्तावन प्रकृतिक ।
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[ कर्मप्रकृति
बयालीस, बावन, चउवन, पचपन,
इनमें तिर्यंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी, द्वीन्द्रिय जाति, त्रस नाम, बादर नाम, पर्याप्त, अपर्याप्त में से कोई एक दुर्भग, अनादेय, यश: कीर्ति - अयश: कीर्ति में से कोई एक इन नौ प्रकृतियों को पूर्वोक्त ध्रुव उदीरणा वाली तेतीस प्रकृतियों के साथ मिलाने पर बयालीस प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। यह बयालीस प्रकृतिक स्थान अपान्तराल गति में वर्तमान द्वीन्द्रिय जीव के जानना चाहिये। इस स्थान में तीन भंग होते हैं, यथा- अपर्याप्त नामकर्म के उदय में वर्तमान जीव के अयश: कीर्ति के साथ एक भंग होता है तथा पर्याप्तक नामकर्म के उदय में वर्तमान जीव के यश: कीर्ति और अयश: कीर्ति के साथ दो भंग होते हैं।
तत्पश्चात् शरीरस्थ द्वीन्द्रिय जीव के औदारिकसप्तक हुंडकसंस्थान, सेवार्तसंहनन उपघात, प्रत्येक नाम इन ग्यारह प्रकृतियों को मिलाने पर और तिर्यंचानुपूर्वी के निकालने पर बावन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। इस स्थान में तीन भंग होते हैं । वे भी पूर्व स्थान के समान जानना चाहिये। तत्पश्चात् शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के विहायोगति और पराघात के प्रक्षेप करने पर चवन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है । इस स्थान में यशःकीर्ति और अयश: कीर्ति की अपेक्षा दो भंग होते हैं ।
पुनः प्राणापान पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के उच्छ्वास नाम को मिलाने पर पचपन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। यहां पर भी पूर्व के समान दो भंग होते हैं । अथवा शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त जीव के उच्छ्वास का उदय नहीं होने पर और उद्योत नामकर्म के उदय होने पर पचपन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। यहां पर भी पूर्व के समान दो भंग होते हैं। इस प्रकार पचपन प्रकृतिक उदीरणास्थान में सर्व भंग चार होते हैं ।
सुस्वर और
तत्पश्चात् भाषापर्याप्ति से पर्याप्त जीव के उच्छ्वास सहित पचपन प्रकृतिक उदीरणास्थान में दुःस्वर में से किसी एक के मिलाने पर छप्पन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है । इस स्थान में सुस्वर और दु:स्वर यश: कीर्ति, अयश: कीर्ति पदों की अपेक्षा चार भंग होते हैं । अथवा प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त जीव के स्वर नाम का उदय नहीं होने पर और उद्योत नामकर्म का उदय होने पर छप्पन प्रकृतिक उदीरणास्थान में सर्व भंग छह होते हैं ।
पुनः भाषापर्याप्ति से पर्याप्त जीव के स्वर सहित छप्पन प्रकृतिक स्थान में उद्योत नामकर्म के