________________
उदीरणाकरण ]
[ १८९ होता है। नारकों के सभी पद अप्रशस्त ही होते हैं । इस कारण इस स्थान में एक ही भंग होता है।
तत्पश्चात् बयालीस प्रकृतिक स्थान में शरीरस्थ नारकी के वैक्रियसप्तक, हुण्डकसंस्थान, उपघात और प्रत्येकनाम ये दस प्रकृतियां मिलाने और नरकानुपूर्वी निकालने पर इक्यावन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है इसमें भी एक ही भंग होता है।
तत्पश्चात् इस इक्यावन प्रकृतिक स्थान में शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त नारक के पराघात और अप्रशस्तविहायोगति के मिलाने पर तिरेपन प्रकृतिक उदीरणा स्थान होता है। यहाँ पर भी एक ही भंग
इसके पश्चात् प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त जीव के तिरेपन प्रकृतिक उदीरणास्थान में उच्छ्वास प्रकृतिक के मिला देने पर चउवन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। यहां पर भी एक ही भंग होता है।
तत्पश्चात् भाषापर्याप्ति से पर्याप्त नारक के दुःस्वर नाम को मिलाने पर पचपन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। यहां पर भी एक ही भंग होता है।
नारकियों के उदीरणास्थान का ज्ञापक कोष्ठक
क्रम
उदीरणा स्थान
४२ प्रकृतिक ५१ प्रकृतिक ५३ प्रकृतिक ५४ प्रकृतिक ५५ प्रकृतिक
योग - ५ इस प्रकार नारकों के भंगों की सर्व संख्या पांच [१+१+१+१+१-५] होती है। इस प्रकार जीवों के विविध भेदों की अपेक्षा नामकर्म के उदीरणास्थानों और उनके भंगों का विवेचन जानना चाहिये। गुणस्थानों में उदीरणास्थान
अब इन्हीं उदीरणास्थानों को गुणस्थानों में बतलाने के लिये गाथा में 'गुणिसु' इत्यादि पद
For or or r rs