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[ कर्मप्रकृति सुस्वर के मिलाने पर पचपन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। यहां पर भी पूर्व के समान स्वमत से चार भंग और मतान्तर से आठ भंग होते हैं। अथवा प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त देव के स्वर के उदय नहीं होने पर और उद्योत नाम के उदय होने पर पचपन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है । यहां पर भी स्वमत की अपेक्षा चार भंग और मतान्तर की अपेक्षा आठ भंग होते हैं । इस प्रकार पचपन प्रकृतिक स्थान में स्वमत से भंगों की सर्व संख्या आठ और मतान्तर से सोलह होती है।
तत्पश्चात् सुस्वर सहित भाषापर्याप्ति से पर्याप्त जीव के पचपन प्रकृतिक स्थान में उद्योत को मिलाने पर छप्पन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। यहां पर भी पूर्व के समान स्वमत से चार भंग और मतान्तर से आठ भंग होते हैं।
इस प्रकार देवों के सर्व भंगों की संख्या स्वमत से बत्तीस [४+४+४+८+८+४=३२] होती है और मतान्तर से चौसठ [८+८+८+१६+१६+८६४] होती है जिनको प्रारूप से इस प्रकार समझें - क्रम उदीरणा स्थान
स्वमत १ ४२ प्रकृतिक
५१ प्रकृतिक ५३ प्रकृतिक ५४ प्रकृतिक ५५ प्रकृतिक ५६ प्रकृतिक योग = ६
भंग
मतान्तर
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arm » 3
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इस प्रकार देवों की उदीरणास्थानों और भंगों को जानना चाहिये। नारक जीवों के उदीरणास्थान
अब नारक जीवों के उदीरणास्थान और उनके भंगों को बतलाते हैं । नारक जीवों के उदीरणास्थान पांच होते हैं । यथा – बयालीस, इक्यावन, तिरेपन, चउवन और पचपन प्रकृतिक। ___इनमें ध्रुव उदीरणा वाली तेतीस प्रकृतियों के साथ नरकगति, नरकानुपूर्वी, पंचेन्द्रियजाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, दुर्भग, अनादेय और अयश:कीर्ति ये नौ प्रकृतियां मिलाने पर बयालीस प्रकृतिक उदीरणास्थान