________________
१९० ]
[ कर्मप्रकृति दिया है कि नामकर्म गुणियों अर्थात् मिथ्यादृष्टि से लेकर सयोगी केवली पर्यन्त गुणस्थानों में यथाक्रम से नव आदि संख्या वाले उदीरणास्थान होते हैं । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है -
मिथ्यादृष्टिगुणस्थान – यहां नौ उदीरणास्थान होते हैं यथा – बयालीस, पचास, इक्यावन, बावन, तिरेपन, चउवन, पचपन, छप्पन और सत्तावन प्रकृतिक।
ये सभी उदीरणास्थान मिथ्यादृष्टि एकेन्द्रिय आदि की अपेक्षा जानना चाहिये।
सास्वादनगुणस्थान में सात उदीरणास्थान होते हैं, यथा – बयालीस, पचास, इक्यावन, बावन, पचपन, छप्पन, और सत्तावन प्रकृतिक।
- इनमें से बयालीस प्रकृतिक उदीरणास्थान बादर एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य और देवों के जो सास्वादन सम्यग्दृष्टि और अपान्तराल गति में वर्तमान हैं के जानना चाहिये। पचास प्रकृतिक उदीरणास्थान शरीरस्थ एकेन्द्रियों के होता है। इक्यावन प्रकृतिक उदीरणा स्थान शरीरस्थ देवों के जानना चाहिये। बावन प्रकृतिक उदीरणास्थान शरीरस्य विकलेन्द्रियों, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यों के होता है । पचपन प्रकृतिक उदीरणास्थान सास्वादन सम्यक्त्व में वर्तमान पर्याप्तक देव और नारकों के होता है । छप्पन प्रकृतिक उदीरणास्थान पर्याप्त तिर्यंच पंचेन्द्रिय मनुष्य और देवों के जानना चाहिये। सत्तावन प्रकृतिक उदीरणा स्थान उद्योत के वेदक पर्याप्त तिर्यंच पंचेन्द्रियों के होता है।
सम्यग् मिथ्यादृष्टि (मिश्र) गुणस्थान में उदीरणास्थान इस प्रकार हैं – पचपन, छप्पन, सत्तावन प्रकृतिक।
इनमें से देव नारकों के पचपन प्रकृतिक, तिर्यंच मनुष्य और देवों के छप्पन प्रकृतिक और उद्योत नाम के वेदक तिर्यंच पंचेन्द्रियों के सत्तावन प्रकृतिक उदीरणास्थान होते हैं।
अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में आठ उदीरणास्थान होते हैं यथा – बयालीस, इक्यावन, बावन, तिरेपन, चउवन, पचपन, छप्पन और सत्तावन प्रकृतिक।
इनमें से नारक देव तिर्यंच पंचेन्द्रिय मनुष्यों के बयालीस प्रकृतिक, देव नारकों के इक्यावन प्रकृतिक, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यों के बावन प्रकृतिक, देव, नारक, तिर्यंच पंचेन्द्रिय, वैक्रिय तिर्यंच और मनुष्यों के चउवन प्रकृतिक और पचपन प्रकृतिक, देव तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यों के छप्पन प्रकृतिक तथा उद्योत वेदक तिर्यंच पंचेन्द्रियों के सत्तावन प्रकृतिक उदीरणा स्थान होता है।
देशविरत गुणस्थान में छह उदीरणास्थान होते हैं, यथा इक्यावन, तिरेपन, चउवन, पचपन, छप्पन और सत्तावन प्रकृतिक।