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उदीरणाकरण ]
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मिलाने पर सत्तावन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। इस स्थान में सुस्वर, दुःस्वर, और यश:कीर्ति, अयश:कीर्ति पदों की अपेक्षा चार भंग होते हैं।
इस प्रकार द्वीन्द्रियों में सर्व भंग बाईस (३+३+२+४+६+४=२२) होते हैं।
इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में प्रत्येक के उदीरणास्थान जानना चाहिये। विशेष यह है कि त्रीन्द्रिय जीवों के उदीरणास्थान कहते समय द्वीन्द्रिय जाति के स्थान पर त्रीन्द्रिय जाति कहना चाहिये और चतुरिन्द्रिय जीवों के कहते समय चतुरिन्द्रिय जाति कहना चाहिये । इन दोनों में भी प्रत्येक के बाईस भंग जानना चाहिये।
इस प्रकार विकलेन्द्रिय जीवों के भंगों की सर्व संख्या छियासठ होती है।
एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय में प्राप्त उदीरणास्थानों और उनके भंगों का प्रारूप इस प्रकार है - उदीरणा स्थान भंग संख्या
विशेष एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय
u
४२ प्रकृतिक ५० प्रकृतिक
x
w x
x
u xmau X e X X w
एकेन्द्रिय में ४२, ५०,५१, ५२ ५३ प्रकृतिक ५ तथा विकलेन्द्रियों में ४२, ५२, ५४, ५५, ५६ ५७ प्रकृतिक ६ उदीरणास्थान होते हैं
wa ma ex w x x w
x x
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2
योग
२२
२२
विक्रियालब्धिरहित तिर्यंच पंचेन्द्रियों के उदीरणास्थान
विक्रियालब्धिरहित तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों के छह उदीरणास्थान होते हैं, यथा – बयालीस,