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[ कर्मप्रकृति तत्पश्चात् स्वर सहित छप्पन प्रकृतिक उदीरणास्थान में उद्योत मिलाने पर सत्तावन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। इसमें भी स्वर सहित छप्पन प्रकृतिक स्थान की तरह स्वमत से पाँच सौ छिहत्तर और मतान्तर से ग्यारह सौ बावन भंग होते हैं।
इस प्रकार विक्रियालब्धिरहित सामान्य तिर्यंच पंचेन्द्रिय के स्वमत से चौबीस सौ चउवन [५+१४५+ २८८+५७६+८६४+५७६=२४५४] और मतान्तर से उनचास सौ छह [९+२८९+५७६+ ११५२+१७२८+११५२-४९०६] भंग होते हैं। जिनका प्रारूप इस प्रकार है - उदीरणा स्थान
भंग
स्वमत
परमत
१४५
२८८
४२ प्रकृतिक ५२ प्रकृतिक ५४ प्रकृतिक ५५ प्रकृतिक ५६ प्रकृतिक ५७ प्रकृतिक योग = ६
५७६ ८६४ ५७६
२८९ ५७६ ११५२ १७२८ ११५२ ४९०६
२४५४
विक्रियालब्धि सहित तिर्यंच पंचेन्द्रियों के उदीरणास्थान
वैक्रियलब्धि युक्त तिर्यंच पंचेन्द्रियों के पाँच उदीरणास्थान होते हैं, यथा – इक्यावन, तिरेपन, चउवन, पचपन, छप्पन प्रकृतिक।
यहां वैक्रियसप्तक, समचतुरस्रसंस्थान, उपघात और प्रत्येक नाम इन दस प्रकृतियों को पूर्वोक्त सामान्य तिर्यंच पंचेन्द्रिय प्रायोग्य बयालीस प्रकृतियों में मिलाने और तिर्यंचानुपूर्वी के निकाल देने पर इक्यावन प्रकृतिक उदीरणास्थान होता है। यहां पर सुभग आदेय युगल और दुर्भग अनादेय युगल का यशःकीर्ति, अयश:कीर्ति की अपेक्षा पर्याप्त पद में चार भंग और मतान्तर से सुभग, दुर्भग, आदेय, अनादेय और यशःकीर्ति अयश:कीर्ति के विकल्प से पर्याप्त के साथ आठ भंग होते हैं।
तत्पश्चात् शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त उसी जीव के पूर्वोक्त इक्यावन प्रकृतिक स्थान के साथ प्रशस्त विहायोगति और पराघात के मिलाने पर तिरेपन प्रकृतिक स्थान होता है। यहां पर भी पूर्व की तरह