________________
[ कर्मप्रकृति
यदि सामान्य से सर्व पंचेन्द्रियों के विक्रिया रहित और विक्रिया सहित के भंगों का विचार किया जाये तो स्वमत से सामान्य तिर्यंच के चौबीस सौ चउवन और वैक्रिय तिर्यंच के अट्ठाईस भंगों के मिलाने पर चौबीस सौ बयासी [ २४५४ + २८ = २४८२] और मतान्तर से सामान्य तिर्यंच के चार हजार नौ सौ छह और वैक्रिय तिर्यंच के छप्पन भंगों को मिलाने पर चार हजार नौ सौ बासठ [४९०६+५६=४९६२] भंग होते हैं । मनुष्यों के उदीरणास्थान
१८४ ]
मनुष्यों के उदीरणास्थानों और उनके भंगों के विचार करने के प्रसंग में यह समझ लेना चाहिये कि सामान्य केवली की और तीर्थंकर केवली की अपेक्षा होने वाले स्थानों और उनके भंगों का कथन पूर्व में किया जा चुका है। यहां पर उन से शेष रहे सामान्य मनुष्य, वैक्रिय मनुष्य और आहारक मनुष्य इन तीन भेदों के स्थान और उनके भंगों को बतलाते हैं ।
न
सामान्य मनुष्यों की अपेक्षा स्थान और उनके भंग इस प्रकार हैं
सामान्य मनुष्यों में पांच उदीरणा स्थान होते हैं यथा- बयालीस, बावन, चउवन, पचपन और छप्पन प्रकृतिक । ये सभी स्थान जैसे पहले तिर्यंच पंचेन्द्रियों के कहे हैं, उसी प्रकार यहां भी कहना चाहिये। केवल अन्तर इतना है कि तिर्यंचगति और तिर्यंचानुपूर्वी के स्थान पर मनुष्यगति और मनुष्यानुपूर्वी कहना चाहिये तथा पचपन, छप्पन प्रकृतिक उदीरणास्थान उद्योतरहित जानना चाहिये। क्योंकि वैक्रिय और आहारक लब्धि वाले संयतों को छोड़कर शेष मनुष्यों के उद्योत नाम के उदय का अभाव होता है । भंग भी सर्व भंग उद्योत रहित तथा स्वमत परमत की अपेक्षा कहना चाहिये। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
स्वमत से बयालीस प्रकृतिक स्थान में पांच भंग, बावन प्रकृतिक स्थान में एक सौ पैंतालीस भंग, चउवन प्रकृतिक स्थान में दो सौ अठासी भंग, पचपन प्रकृतिक स्थान में दो सौ अठासी और छप्पन प्रकृतिक उदीरणास्थान में पांच सौ छिहत्तर भंग होते हैं । अतः स्वमत की अपेक्षा सामान्य मनुष्य के सर्वभंग तेरह सौ दो [५+१४५+२८८ +२८८ + ५७६ = १३०२] जानना चाहिये ।
परमत की अपेक्षा यथाक्रम से बयालीस प्रकृतिक स्थान में नौ, बावन प्रकृतिक स्थान में दो सौ नवासी, चउवन प्रकृतिक स्थान में पांच सौ छिहत्तर, पचपन प्रकृतिक स्थान में पांच सौ छिहत्तर और छप्पन प्रकृतिक स्थान में ग्यारह सौ बावन भंग होते हैं । अतः परमत से छब्बीस सौ दो [९+२८९+५७६+५७६ + ११५२ = २६०२ ] भंग सामान्य मनुष्य के जानना चाहिये ।