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उदीरणाकरण ]
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प्रकार है -
अनिवृत्तिकरण गुणस्थान – इसमें दो उदीरणास्थान हैं, यथा – दो और एक प्रकृतिक। इनमें चारों संज्वलन क्रोधादि कषायों में से कोई एक क्रोधादि कषाय, तीन वेदों में से कोई एक वेद। इस दो प्राकृतिक उदीरणास्थान में तीन वेदों और चारों संज्वलन कषायों का परस्पर गुणा करने से बारह भंग होते हैं । तथा वेदों के क्षय हो जाने पर अथवा उपशांत हो जाने पर संज्चलन क्रोधादि कषायों में से कोई एक क्रोधादि कषाय उदीरित होती है । इस एक प्रकृतिक उदीरणास्थान में चार भंग होते हैं ।
सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान - 'लोभो तणुरागेगो' तनुराग अर्थात् सूक्ष्म लोभ वाले सूक्ष्मसंपराय गुणस्थानवी जीव के सूक्ष्म लोभ की कृष्टि का वेदन करते हुए मोहनीय कर्म की प्रकृतियों में एक लोभ ही उदीरणा के योग्य होता है। उदीरणास्थानों की चौबीसियों का संकलन
अब चार को आदि लेकर दस तक के उदीरणास्थानों में विरत गुणस्थान के अंत तक जितनी चौबीसियां होती हैं, उनका पश्चानुवर्ती क्रम से निरूपण करते हैं - चउवीसेत्यादि, अर्थात् दस प्रकृतियों की उदीरणा में एक चौबीसी, नौ की उदीरणा में छह चौबीसी, आठ की उदीरणा में ग्यारह चौबीसी, सात की उदीरणा में दस चौबीसी, छह की उदीरणा में सात चौबीसी, पाँच की उदीरणा में चार चौबीसी और चार की उदीरणा में एक चौबीसी होती है। इन सब चौबीसियों का यथास्थान पहले उल्लेख कर दिया है। यहां पर उनका संकलन अपनी बुद्धि से विचार लेना चाहिये।
सरलता से समझने के लिये गुणस्थानों में मोहनीय कर्म के उदीरणास्थानों और भंगों की संख्या का दर्शक प्रारूप इस प्रकार है -