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उदीरणाकरण ]
सभी देव नियम से सुख अर्थात् सातावेदनीय, रति और हास्य मोहनीय के उदीरक जानना चाहिये, लेकिन अनन्तर अनियम है । अर्थात् साता आदि के भी उदीरक होते हैं और असाता आदि के भी । इसी प्रकार कुछ कम प्रथम क्षण तक अर्थात् उत्पन्न होने के प्रथम अन्तर्मुहूर्त तक सभी नारक पूर्वोक्त से इतर अर्थात् असातावेदनीय, अरति और शोक प्रकृतियों के नियमतः उदीरक होते हैं। उससे आगे तीर्थंकरों के केवलज्ञान प्राप्ति के समय में विपर्यास भी होता है । अर्थात् तीर्थंकरों के जन्म केवलज्ञान का लाभ आदि के महान अवसरों पर नारकी जीव साता वेदनीय आदि प्रकृतियों के भी उदीरक होते हैं । किन्तु कितने ही नारक समस्त भवस्थितिपर्यन्त असातावेदनीय और शोक के उदीरक होते हैं । इस प्रकार उत्तरप्रकृतियों की उदीरणा के स्वामित्व को जानना चाहिये ।
उदीरणास्थान
अब प्रकृतियों के उदीरणास्थानों के विचार को प्रारम्भ करते हैं
पंचण्हं च चउण्हं, विइए एक्काइ जा दसहं तु । तिगहीणाइ मोहे, मिच्छे सत्ताइ जाव दस ॥ २२ ॥ शब्दार्थ – पंचण्हं - पांच का, च और, चउन्हं ( दर्शनावरण कर्म में ), एक्काई जा दसण्हंतु एक से दस तक के तिगहीणाइ मोहे – मोहनीय कर्म में, मिच्छे – मिथ्यात्व में, सत्ताइ जाव दस
चार का, विइए -
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गाथार्थ - दूसरे कर्म के पांच का और चार का ये दो उदीरणास्थान है । मोहनीय कर्म में तीन को छोड़ कर एक से लेकर दस तक के नौ उदीरणास्थान होते हैं । उनमें से मिथ्यात्व गुणस्थान में सात से लेकर दस तक के चार उदीरणास्थान होते हैं ।
दूसरे कर्म में तीन से हीन,
सात से लेकर दस तक के ।
विशेषार्थ दर्शनावरण रूप दूसरे कर्म में पांच प्रकृतियों की अथवा चार प्रकृतियों की एक साथ उदीरणा होती है। उनमें चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण और केवलदर्शनावरण रूप चार प्रकृतियों की छद्मस्थ जीवों के ध्रुव उदीरणा होती है। इन चारों के साथ पांच निद्राओं में से किसी एक निद्रा प्रकृति को मिला देने पर पांच प्रकृतियों की उदीरणा होती है तथा मोहनीय कर्म में तीन से हीन एक से लेकर दस तक की उदीरणा जानना चाहिये । उक्त कथन का तात्पर्य यह है कि मोहनीय कर्म में उदीरणा की दृष्टि से एक को आदि ले कर और तीन को छोड़ कर दस तक के नौ प्रकृतिस्थान होते हैं, यथा एक, दो, चार, पांच, छह, सात, आठ, नौ, दस । अब इन उदीरणास्थानों के स्वामियों को बतलाते । मिथ्यात्व गुणस्थान मिच्छे सत्ताइ जाव दस अर्थात् मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में सात से लेकर दस तक के चार उदीरणास्थान होते हैं, यथा
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