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उदीरणाकरण ]
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गाथार्थ – क्षीणरागी और क्षपक जीवों को छोड़ कर शेष सभी पर्याप्त जीव इन्द्रियपर्याप्ति से पर्याप्त होने के बाद दूसरे समय से निद्रा और प्रचला की उदीरणा करने के योग्य होते हैं।
विशेषार्थ – इन्द्रियपर्याप्ति से पर्याप्त होने के पश्चात् द्वितीय समय से लेकर शेष सभी कालवर्ती जीव निद्रा और प्रचला की उदीरणा करने योग्य होते हैं।
प्रश्न – क्या सभी जीव इन दोनों प्रकृतियों की उदीरणा करते हैं ?
उत्तर – सभी तो नहीं, किन्तु क्षीणरागी और क्षपकों को छोड़ कर शेष सभी जीव उदीरणा करते हैं । उदय होने पर ही उदीरणा होती है अन्यथा नहीं। किन्तु क्षीणरागी और क्षपक के निद्रा और प्रचला का उदय संभव नहीं है। क्यों कि -
निहादुगस्स उदयो खीणगखवगे परिच्चज। निद्राद्विक का उदय क्षीणरागी और क्षपक को छोड़ कर होता है। यह वचन प्रमाण है। इसलिये इन दोनों को छोड़ कर शेष सभी जीव निद्रा और प्रचला के उदीरक जानना चाहिये। तथा –
निहानिहाईण वि, असंखवासा य मणुयतिरिया य।
वेउव्वाहारतणू, वजित्ता अप्पमत्ते य॥१९॥ . शब्दार्थ – निहानिहाईण – निद्रा निद्रादि के, असंखवासा – असंख्यात वर्षायुष्क, य - और, मणुयतिरिया – मनुष्य, तिर्यंच, य - और, वेउव्वाहारतणू - वैक्रिय और आहारक शरीरी, वजित्ता – छोड़कर, अप्पमत्ते - अप्रमत्त, य - और।
___ गाथार्थ – निद्रानिद्रादि प्रकृतियों के उदीरक असंख्यातवर्षायुष्क मनुष्य, तिर्यंच, वैक्रिय शरीरी, आहारक शरीरी और अप्रमत्त संयतों को छोड़ कर शेष सभी जीव होते हैं।
विशेषार्थ – असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य, तिर्यंच, वैक्रिय शरीरी, आहारक शरीरी और प्रमत्त संयतों को छोड़ कर शेष सभी जीव निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला स्त्यानर्धि के उदीरक जानना चाहिये। तथा –
वेयणियाण पमत्ता, ते ते बंधंतगा कसायाणं।
हासाईछक्कस्स य, अपुवकरणस्स चरमंते॥२०॥ १. जो कर्मस्तवकार क्षपक और क्षीणमोह में भी निद्राद्विक के उदय का कथन करते हैं। उनके मत में उदय के होने पर उदीरणा के अवश्यंभावी नियमानुसार क्षीणराग की अंतिम आवलिका को छोड़कर उसके पूर्व तक सभी इन्द्रियपर्याप्ति से पर्याप्त जीव निद्रा, पश्वला के उदीरक हैं जैसा कि उनके मतानुसार भी पंचसंग्रह में कहा है "मोत्तूण क्षीणरागं इन्द्रियपजत्तगा उदीरत्ति निद्दापयला"