________________
१२८ ]
शब्दार्थ
पल्योपम सहित, अबंधित्ता- नहीं बांधकर, अंते अन्त समय में, अहप्पवत्तकरणस्स
के, उज्जोव तिरियदुगे – उद्योत और तिर्यंचद्विकको ।
-
[ कर्मप्रकृति
तेवट्ठियं उदहीणं - एक सौ तिरेसठ सागरोपम तक, सचउपल्लाहियं
―
गाथार्थ - उद्योत और तिर्यंचद्विक को चार पल्योपम सहित एक सौ तिरेसठ सागरोपम काल तक नहीं बांधकर यथाप्रवृत्तकरण के अंतिम समय में जघन्य प्रदेशसंक्रम करता है ।
-
-
विशेषार्थ - तिरेसठ अधिक सौ सागरोपम और चार पल्योपम अधिक' काल तक वह क्षपितकर्मांश जीव तिर्यग्विक और उद्योत का सर्व जघन्य सत्कर्मा होकर अर्थात् उतने काल तक उद्योत और तिर्यग्विक को नहीं बांधकर यथाप्रवृत्तकरण के चरम समय में उद्योत और तिर्यद्विक का जघन्य प्रदेशसंक्रम करता है। प्रश्न एक सौ तिरेसठ और चार पल्योपम से अधिक काल तक तिर्यंचद्विक और उद्योत को वह कैसे नहीं बांधता है ?
चार
उत्तर वह क्षपितकर्मांश जीव तीन पल्योपम की आयु वाले मनुष्यों में उत्पन्न हुआ, वहां पर वह देवद्विक को ही बांधता है, तिर्यंचद्विक को नहीं बांधता है और न उद्योत को ही । वहां अन्तर्मुहूर्त आयु के शेष रह जाने पर सम्यक्त्व को प्राप्त कर और वहां सम्यक्त्व को नहीं छोड़ते हुये भी अर्थात् सम्यक्त्व के साथ ही पल्योपम की स्थिति वाला देव हुआ । पुनः सम्यक्त्व के साथ ही देव भव से च्युत होकर मनुष्यों में उत्पन्न हुआ, पुन: उसी अप्रतिपतित सम्यक्त्व के साथ इकतीस सागरोपम की स्थिति वाले ग्रैवेयकों में देव हुआ। वहां पर उत्पन्न होने के अनन्तर अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् मिथ्यात्व को प्राप्त हो गया। तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आयु शेष रह जाने पर पुनः सम्यक्त्व को प्राप्त किया। तत्पश्चात् दो छियासठ सागरोपमों ( एक सौ बत्तीस सागरोपम ) तक मनुष्यों और अनुत्तर आदि देवों में सम्यक्त्व का अनुपालन कर उस सम्यक्त्व के अन्तर्मुहूर्त शेष रह जाने पर शीघ्र ही कर्मक्षपण के लिये उद्यत हुआ । तब उस विधि से एक सौ तिरेसठ सागरोपम और चार पल्य से अधिक काल तक वह जीव तिर्यंचद्विक और उद्योत को नहीं बांधता है अर्थात् इतने काल तक उनके बंध से रहित रहता है। तथा
इगविगलिंदिय जोग्गा, अट्ठऽपज्जत्तगेण सह तेसिं । तिरियगइसमं, नवरं पंचासी उदहिसयं तु ॥ १०८ ॥
यथाप्रवृत्तकरण
प्रकृतियां अपज्जत्तगेणसह - अपर्याप्त के साथ, तेसिं
१. यहां अधिक शब्द संख्यात वर्षायु वाले मनुष्य भवों की अपेक्षा का सूचक है।
शब्दार्थ - इगविगलिंदियजोग्गा – एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय के योग्य, अट्ठ आठ उनका, तिरियगइसमं - तिर्यंचगति के समान,