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[ कर्मप्रकृति
छोड़कर अन्य प्रदेशसत्व नहीं रहता है, वह भी प्रति समय संक्रमण के द्वारा तब तक क्षय को प्राप्त होता रहता है जब तक कि चरम समय में बंधे हुए कर्मदलिक का संख्यातवां भाग शेष रहता है, इसलिये उसे सर्व संक्रम के द्वारा संक्रांत करने वाले जीव के जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है।
असाएण समा .............. इत्यादि अर्थात् अरति और शोक मोहनीय का जघन्य प्रदेशसंक्रम असातावेदनीय के जघन्य प्रदेश संक्रम के समान जानना चाहिये। तथा –
वेउव्विकारसगं उव्वलियं बंधिऊण अप्पद्ध। जिट्ठठिई निरयाओ, उव्वट्टित्ता अबंधित्तु ॥१०४॥ थावरगयस्स चिर-उव्वलणो एयस्स एव उच्चस्स।
मणुयदुगस्स य तेउसु, वाउसु वा सुहुमबद्धाणं ॥१०५॥ शब्दार्थ – वेउव्विक्कारसगं - वैक्रिय - एकादशक को, उव्वलियं – उद्वलित, बंधिऊणबांधकर, अप्पद्धं – अल्पकाल, जिट्ठठिई - उत्कृष्ट स्थिति, निरयाओ - नरक में से, उव्वट्टित्ता - निकलकर, अबंधित्तु – नहीं बांधकर।
थावरगयस्स - स्थावर में गये हुये को, चिर-उव्वलणो – दीर्घकाल तक उद्वलना करते हुए, एयस्स – इनका, एव - इसी प्रकार, उच्चस्स – उच्चगोत्र का, मणुयदुगस्स – मनुष्यद्विक का, य -
और, तेउसु वाउसु - तेजस्काय वायुकाय में, वा - और, सुहुमबद्धाणं - सूक्ष्म एकेन्द्रिय के भव में बांधते हुए।
गाथार्थ – उद्वलित वैक्रिय - एकादश को अल्पकाल तक बांधकर उत्कृष्ट स्थिति वाले नरक में से निकलकर तिर्यंच पंचेन्द्रिय भव में उनको नहीं बांधकर स्थावरकाय में गये जीव के चिर काल तक उद्वलन करते हुए उक्त जीव के इन ग्यारह प्रकृतियों का जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है। इसी प्रकार उच्चगोत्र
और मनुष्यद्विक का तेजस्काय और वायुकाय में सूक्ष्म एकेन्द्रिय भव के द्वारा बांधे गये दलिक का पूर्वोक्त विधि से उसी जीव के जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है।
विशेषार्थ – देवद्विक नरकद्विक और वैक्रियसप्तक इन वैक्रिय एकादशक की एकेन्द्रिय भव में रहते हुये उद्वलना की, फिर पंचेन्द्रियपने को प्राप्त होते हुए अल्पकाल अर्थात् अन्तर्मुहूर्तकाल तक वैक्रिय एकादशक को बांधकर वहां से उत्कृष्ट स्थिति वाला अर्थात् तेतीस सागरोपम की आयु वाली सातवीं नरक पृथ्वी में नारक हुआ और वहां उतने काल तक यथायोग्य उस वैक्रिय एकादशक का अनुभव कर उस सातवें नरक से निकलकर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में उत्पन्न हुआ और वहां पर उस वैक्रिय - एकादशक को नहीं बांधकर स्थावर एकेन्द्रियों में उत्पन्न हुआ और वहां पर चिरकालीन उद्वलना से अर्थात् पल्योपम के असंख्यातवें भाग