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संक्रमकरण ]
सर्वोत्कृष्ट द्विस्थानक रस से संयुक्त स्पर्धक पटल जब संक्रांत होता है तब उसका उत्कृष्ट अनुभाग संक्रम होता
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मनुष्यायु, तिर्यंचायु, आतप और सम्यग्मिथ्यात्व इन चार प्रकृतियों का स्थान की अपेक्षा अर्थात सर्वोत्कृष्ट द्विस्थानक रस से युक्त घातिपने का आश्रय करके सर्वघाति रस स्पर्धक में उत्कृष्ट अनुभागसंक्रम होता है। यहां पर भी यह तात्पर्यार्थ है कि जब मनुष्यायु, तिर्यंचायु, आतप और सम्यग्मिथ्यात्व के सर्वोत्कृष्ट द्विस्थानक रस से युक्त रसस्पर्धक संक्रांत होते हैं, तब वह उनका उत्कृष्ट अनुभागसंक्रम है। यहां पर मनुष्यायु, तिर्यंचा और आप इन प्रकृतियों का 'दुतिचउट्ठाणा उ सेसाउ''इस वचन के अनुसार द्विस्थानक, त्रिस्थान और चतु:स्थानक रस संभव होने पर भी जो द्विस्थानक रस स्पर्धक का ही उत्कृष्ट अनुभागसंक्रम कहा गया है, वह यह सूचित करता है कि उन कर्मों का उस प्रकार का स्वभाव होने से ही त्रिस्थानक और चतुःस्थानक रस वाले स्पर्धकों को उद्वर्तना रूप अपवर्तना रूप और अन्य प्रकृतिनयन (परिणमन) रूप तीनों ही प्रकार का संक्रम नहीं होता है।
'सेसाउ चउट्ठाणे' अर्थात ऊपर कही गई प्रकृतियों के सिवाय शेष प्रकृतियों के स्थान की अपेक्षा सर्वोत्कृष्ट चतुःस्थानक रस और घातित्व की अपेक्षा सर्वघातिरस जब संक्रांत होता है, तब वह उनका उत्कृष्ट अनुभागसंक्रम जानना चाहिये ।
इस प्रकार उत्कृष्ट अनुभागसंक्रम का प्रमाण समझना चाहिये। अब जघन्य अनुभागसंक्रम के प्रमाण का प्रतिपादन करते हैं
'मंदो त्ति' अर्थात् जब सम्यक्त्व मोहनीय प्रकृति, पुरुषवेद और संज्वलन कषायों का एक स्थानक रस में संक्रमण होता है तब वह मंद यानि जघन्य अनुभागसंक्रम जानना चाहिये। इसका तात्पर्य यह है
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सम्यक्त्व प्रकृति का सर्व विशुद्ध एक स्थानक रस जब संक्रांत होता है, तब वह उसका जघन्य अनुभागसंक्रम है । पुरुषवेद और संज्वलन कषायों के क्षपणकाल में जो एक समय कम आवलिकाद्विक बद्ध एक स्थानक रस वाले स्पर्धक हैं, वे जब संक्रांत होते हैं, तब वह उनका जघन्य अनुभागसंक्रम जानना चाहिये ।
'सेसासु इत्यादि' अर्थात ऊपर कही गई प्रकृतियों के सिवाय शेष जो सभी प्रकृतियां हैं, उनमें द्विस्थानक रस से युक्त सर्वघाति रस स्पर्धक के संक्रमण होने पर जघन्य अनुभागसंक्रम जानना चाहिये। इसका तात्पर्य यह है
सम्यक्त्वमोहनीय, पुरुषवेद और संज्वलनचतुष्क से अन्य जो शेष प्रकृतियां हैं, उनके रसस्पर्धक १. इन छह प्रकृतियों का अध्याहार से घातित्व आश्रयी जघन्य अनुभागसंक्रम देशघाति रस संक्रान्त होना समझना चाहिये ।