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संक्रमकरण ]
[ ९७ सूक्ष्मत्रस (गति त्रस तैजसकायिक और वायुकायिक) जीव उच्च गोत्र की और तदनन्तर मनुष्यद्विक की उद्वलना करता है। अनिवृत्तिबादरसंपराय गुणस्थान में क्षपक जीव छत्तीस प्रकृतियों की उद्वलना करता है।संयोजन (अनन्तानुबंधीचतुष्क) प्रकृति की और दृष्टियुगल (मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व) की उद्वलना इनका क्षय करने वाला करता है।
विशेषार्थ - मोहनीय कर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों की सत्ता वाला मिथ्यादृष्टि ऊपर बताये प्रकार से पहले सम्यक्त्व प्रकृति की , तदनन्तर सम्यक्त्वमिथ्यात्व प्रकृति की उद्वलना करता है, तथा एकेन्द्रिय और आहारकसप्तक से रहित नामकर्म की पंचानवै प्रकृतियों की सत्ता वाला जीव देवगति और देवानुपूर्वी की पूर्वोक्त विधि से युगपत् उद्वलना करता है। तदनन्तर वैक्रियसप्तक और नरकद्विक को एक साथ उद्वलित करता है।
सूक्ष्मत्रस अर्थात तैजसकायिक और वायुकायिक एकेन्द्रिय जीव उत्तम गोत्र – उच्च गोत्र की सर्व प्रथम पूर्वोक्त विधि से उद्वलना करता है। तदनन्तर मनुष्यद्विक-मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी-की उद्वलना करता है।
इस प्रकार मिथ्यादृष्टि की होने वाली प्रकृतियों की उद्वलना का विचार करने के बाद अब सम्यग्दृष्टि से सम्बंधित उद्वलना का कथन करते हैं।
इसका प्रारम्भ 'अहानियट्टिम्मि' इत्यादि पद से किया गया है। इस पद में अह-अथ शब्द दुसरे अधिकार का सूचक है और वह दूसरा अधिकार यह है कि पूर्वोक्त प्रकृतियों की उद्वलना तो पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र काल के द्वारा यथायोग्य मिथ्यादृष्टि के होती है और आगे कही जाने वाली प्रकृतियों की उद्वलना अन्तर्मुहूर्तकाल के द्वारा सम्यग्दृष्टियों के होती है। इसलिये इस अधिकारान्तर को बताने के लिये अथ शब्द दिया है।
प्रश्न – किन प्रकृतियों की सम्यग्दृष्टि उद्वलना करता है ?
उत्तर – 'अनियट्टिम्मि छत्तीसाए' और नियगे संजोयण दिविजुयले य।अर्थात अनिवृत्तिबादरसंपराय गुणस्थान में छत्तीस प्रकृतियों की उद्वलना होती है और अपने-अपने क्षपण काल में अविरत सम्यग्दृष्टि
आदि संयोजना अर्थात अनन्तानुबंधी कषायों की और दृष्टियुगल अर्थात मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व की उद्वलना करते हैं। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है -
अनिवृत्तिबादरसंपराय क्षपक स्त्यानर्धित्रिक, नामत्रयोदशक', अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण १. आदि शब्द से देशविरत, प्रमत्त, अप्रमत्त विरत जीवों का ग्रहण करना चाहिये २. नरकद्विक, तिर्यंचद्विक, एकेन्द्रिय जातिचतुष्क, स्थावर, आतप, उद्योत, सूक्ष्म, साधारण।