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[ कर्मप्रकृति
प्रदेशसंक्रम
अब प्रदेशसंक्रम के कथन का अवसर प्राप्त है। उसके विचार के निम्नलिखित अर्थाधिकार हैं -
१. सामान्य लक्षण, २. भेद, ३. सादि अनादि प्ररूपणा, ४. उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम स्वामी, ५. जघन्य प्रदेशसंक्रम स्वामी। इनमें से पहले प्रदेशसंक्रम का लक्षण और भेदों का कथन करते हैं -
जं दलियमन्नपगई, निज्जइ सो संकमो पएसस्स।
उव्वलणो विज्झाओ, अहापवत्तो गुणो सव्वो॥६०॥ शब्दार्थ – जं- जो, दलियं – दलिक, अन्नपगई - अन्य प्रकृति में, निजइ – ले जाये जाते हैं, सो – वह, संकमोपएसस्स – प्रदेशसंक्रम, उव्वलणो - उद्वलन, विझाओ - विध्यात, अहापवत्तोयथाप्रवृत्त, गुणो – गुणसंक्रम, सव्वो – सर्वसंक्रम।
गाथार्थ – जो दलिक अन्य प्रकृति में ले जाए जाते हैं, वह प्रदेशसंक्रम कहलाता है। उसके १ उद्वलनासंक्रम, २. विध्यातसंक्रम, ३. यथाप्रवृत्तसंक्रम, ४. गुणसंक्रम, ५. सर्वसंक्रम, ये पांच भेद हैं।
विशेषार्थ – जो संक्रमप्रायोग्य दलिक अर्थात कर्मद्रव्य अन्य प्रकृतिरूप से परिणमन को प्राप्त होते हैं, उसे प्रदेशसंक्रम कहते हैं – पत्संक्रमप्रायोग्यं दलिकं कर्मद्रव्यं अन्यप्रकृतिं नीयते अन्यप्रकृतिरूपतया परिणम्यते स प्रदेशसंक्रमः। यह प्रदेशसंक्रम का सामान्य लक्षण है। अब उसके भेदों का विचार करते हैं -
प्रदेशसंक्रम पांच प्रकार का है – उद्वलनासंक्रम, विध्यातसंक्रम, यथाप्रवृत्तसंक्रम, गुणसंक्रम और सर्वसंक्रम।
___ जैसा उद्देश्य होता है तदनुरूप निर्देश किया जाता है - इस न्याय के अनुसार पहले उद्वलनासंक्रम का विचार करते हैं -
१. 'धनवलान्वितस्याल्पदलस्योत्तरणं उत्कीरणं तदेव च उद्वलनं व्यपदिश्यते' - अतिसघन कर्म दलिकों से युक्त कर्म प्रकृतियों के दलिकों का उद्वलन-उत्कीरण यानि उत्खनन करने को उद्वलना संक्रम कहते हैं। अर्थात विवक्षित परमाणुओं को विवक्षित विधि से स्वस्थान से उखाड़कर अन्य प्रकृति में इस तरह स्थापित करना कि जिससे वे परमाणु अन्त में सर्वथा निःसत्ता हो जायें - प्रकृतेरुदवेलनं भागाहारेणाकृष्य परप्रकृतीयां नीत्वा विनाशनमुदवेलनं।
___ इस उद्वलनासंक्रम के द्वारा अधिक स्थिति और गाढ रस वाले दलिक उद्वलित, उत्कीर्ण होकर अथवा उकलकर हीनस्थिति और हीनरस वाले हो जाते हैं। जैसे रस्सी को उकेलने से उसकी ऐंठन, बल उकल जाते हैं। जिससे उसके तन्तु अलग-अलग हो जाते हैं और उनका परस्पर एक दूसरे से गाढ़ सम्बन्ध भी छूट जाता है और तन्तु के ढीले पड़ जाने से उनकी मजबूती भी कम हो जाती है। इसी प्रकार कर्मदलिकों के लिये भी समझना चाहिये।