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[ कर्मप्रकृति
जोगंतियाण अंतो - मुहत्तिओ सेसियाण पल्लस्स।
भागो असंखियतमो, जट्ठिइगो आलिगाइ सह॥३५॥ . शब्दार्थ – जोगंतियाण – सयोगी गुणस्थान के अन्त समय तक, अंतोमुहत्तिओ – अन्तर्मुहूर्त प्रमाण, सेसियाण – बाकी की, पल्लस्स – पल्योपम का, भागो – भाग प्रमाण, असंखियतमो - असंख्यातवां, जट्ठिइगो – यत्स्थिति, आलिगाइ – आवलिका, सह – सहित ।
गाथार्थ – सयोगी केवली के अन्त समय तक जो प्रकृतियां पाई जाती हैं उनका जघन्य स्थितिसंक्रम (उदयावलिहीन) अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है। शेष प्रकृतियों का जघन्य स्थितिसंक्रम पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इन दोनों ही प्रकार की प्रकृतियों की यत्स्थिति संक्रमण काल में एक आवलिका सहित जघन्य स्थितिसंक्रमण प्रमाण होती है।
विशेषार्थ – योगी अर्थात सयोगी - केवली में संक्रम की अपेक्षा जिन प्रकृतियों का अन्त पाया जाता है, वे 'योग्यन्तिक' कहलाती हैं। उन प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं -
नरकद्विक, तिर्यंचद्विक, पंचेन्द्रिय जाति को छोड़कर शेष चार जातियां, स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, आतप और उद्योत। इन तेरह प्रकृतियों को छोड़कर नामकर्म की शेष नव्वै प्रकृतियां तथा सातावेदनीय, असातावेदनीय, उच्चगोत्र और नीचगोत्र इन चौरानवै प्रकृतियों की सयोगी केवलि के चरम समय में सर्वअपवर्तनाकरण के द्वारा अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थिति रह जाती है। वह अपवर्तित की जाती हुई उदयावलिका से रहित जघन्य स्थितिसंक्रम है। क्योंकि उदयावलिका सकल करणों के अयोग्य है, इस कारण उसका अपवर्तन नहीं होता है। अतः उस आवलि से सहित अपवर्तना रूप जघन्य स्थितिसंक्रम काल में उनकी यत्स्थिति है। अर्थात् उदयावलिका सहित अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थिति उनकी यत्स्थिति है।
शंका – इन प्रकृतियों की अयोगी केवली एक समय अधिक आवलिकाल प्रमाण शेष रही स्थिति में वर्तमान जघन्य स्थितिसंक्रमण किस कारण से नहीं करते हैं, जैसा कि मतिज्ञानावरण आदि कर्मों का क्षीणकषाय गुणस्थान में होता है ?
समाधान – अयोगी केवली भगवान सूक्ष्म और बादर सभी प्रकार के योग के प्रयोग से रहित, मेरु के समान निष्प्रकम्प रहते हैं, अतः वे आठ करणों में से किसी एक भी करण को नहीं करते हैं। क्योंकि वे निष्क्रिय अर्थात सर्व प्रकार की क्रिया से रहित होते हैं। केवल उदय प्राप्त कर्मों का वेदन करते हैं। इसलिये
१. संक्रमक्रम के अन्त समय में शेष रहे सब परमाणुओं के समुदाय को एक साथ संक्रान्त कर देना सर्वापवर्तना कहते हैं। इसको सर्वसंक्रम भी कहते हैं।