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पतद्ग्रहस्थान
पतद्ग्रह
संक्रमस्थान
संक्रम प्रकृतियां | सत्ता संक्रम काल | स्वामी
संक्रमकरण ]
१९ प्रकृतिक' | १२ कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा | २६ प्रकृतिक | १६ कषाय, ९ नो कषाय २८ | एक आवलिका | उपशम सम्यक्त्वी श्री अन्यतर युगल', सम्यक्त्व मोह. १ मिथ्यात्व = २६ ।
प्रथम आव. में 2 मिश्र मोह. = १९
| २७ प्रकृतिक | १६ कषाय, ९ नोकषाय, २८ | अन्तर्मुहूर्त क्षायोप. उपशम सम्यक्त्व
१ मिश्र मोह., १ मिथ्या. | चतुर्थ गुणस्थान में प्रथम आव. के | = २७
रहे तब तक बाद क्षायोपशमिक
| सम्यग्दृष्टि २३ प्रकृतिक | अनन्ता. रहित २१ कषाय २४ | अन्तर्मुहूर्त अनन्तानुबंधी की १ मिश्र मोह., १ मिथ्या.
विसंयोजना के त्व = २३
क्षायोपशमिक | बाद उपशम सम्य सम्यक्त्व चौथे | वेदक सम्यग्दृष्टि गुण में रहे तब (अनन्तानुबंधी तक
की विसंयोजना
के बाद) १८ प्रकृतिक | १२ कषाय, पु. वेद, भय, जुगुप्सा, | २२ प्रकृतिक | २१ कषाय, मिश्र | २३ । अन्तर्मुहूर्त | क्षपित अनन्ता.
१. अश्रेणीगत अविरत सम्यग्दृष्टि के १९, १८, १७ प्रकृतिक देशविरत के १५, १४, १३ प्रकृतिक संयत (प्रमत्त, अप्रमत्त संयत) के ११, १०, ९ प्रकृतिक कुल ९ पतद्ग्रहस्थान तथा इनमें २७, २६, २३, २२, २१ प्रकृतिक कुल ५ संक्रमस्थान हैं और मिथ्यात्व से ले कर अप्रमत्त संयत तक २२, २१, १९, १८, १७, १५, १४, १३, ११, १० और ९ प्रकृतिक। इस तरह ११ पतद्ग्रहस्थान और २७, २६, २५, २३, २२, २१ प्रकृतिक इस प्रकार ६ संक्रमस्थान जानना चाहिये। २. हास्य - रति और अरति - शोक में से कोई दो प्रकृतियां।
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