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संक्रमकरण ]
एक, चौरानवे, नवासी, अठासी और इक्यासी, ये पांचों ही संक्रमस्थान श्रेणी में वर्तमान जीव के द्वारा एकमात्र यश:कीर्ति को बांधते हुये संक्रम्यमाण रूप से प्राप्त होते हैं, अन्यत्र नहीं । इसलिये उनको छोड़कर शेष एक सौ तीन, एक सौ दो, छियानवै, पंचानवै, तिरानवै, चौरासी और बियासी प्रकृतिरूप ये सात संक्रमस्थान तीस प्रकृतिक और उनतीस प्रकृतिक पतद्ग्रह में संक्रांत होते हैं। जिनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
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एक सौ तीन प्रकृतियों की सत्ता वाले सम्यग्दृष्टि देव के तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वर्णादिचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, पंचेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, औदारिकअंगोपांग, समचतुरस्रसंस्थान, वज्रऋषभनाराचसंहनन, मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी, त्रस, बादर, पर्याप्त, स्थिर, अस्थिर में से कोई एक, शुभ अशुभ में से कोई एक, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशःकीर्ति, पराघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति और तीर्थंकररूप मनुष्यगति प्रायोग्य तीर्थंकर नाम सहित तीस प्रकृतियों को बांधते हुये तीस प्रकृतिक पतद्ग्रह में एक सौ तीन प्रकृतिक संक्रमस्थान संक्रांत होता है ।
एक सौ दो प्रकृतियों की सत्ता वाले अप्रमत्तसंयत या अपूर्वकरणसंयत के देवगति, पंचेन्द्रियजाति, वैक्रियशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियअंगोपांग, देवानुपूर्वी पराघात, उच्छ्वास, प्रशस्त,विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशः कीर्ति, तैजसशरीर कार्मणशरीर, वर्णादि चतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, आहारकद्विक लक्षण वाली देवगति प्रायोग्य तीस प्रकृतियों को बांधते हुये तीस प्रकृतिक पतद्ग्रह में एक सौ दो प्रकृतिक संक्रमस्थान संक्रांत होता है।
अथवा एक सौ दो प्रकृतियों की सत्ता वाले एकेन्द्रिय आदि जीवों के उद्योत सहित द्वीन्द्रिय आदि के योग्य तैजसशरीर, कार्मणशरीर, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, वर्णादिचतुष्क, तिर्यंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी, द्वीन्द्रियादिचतुष्क में से कोई एक जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, अस्थिर में से कोई एक, शुभ अशुभ में से कोई एक, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, यश: कीर्ति, अयशःकीर्ति में से कोई एक, औदारिकशरीर, औदारिकअंगोपांग, कोई एक संस्थान, कोई एक संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, पराघात, उद्योत और उच्छ्वास रूप तीस प्रकृतियों को बांधते हुये तीस प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में एक सौ दो प्रकृतिक संक्रमस्थान संक्रांत होता है।
छियानवै प्रकृतियों की सत्ता वाले देव और नारकों के मनुष्यगतिप्रायोग्य तीर्थंकर नाम सहित पूर्वोक्त तीस प्रकृतियों को बांधते हुये तीस प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में छियानवै प्रकृतिक संक्रमस्थान संक्रांत होता है । पंचान प्रकृतियों की सत्ता वाले अप्रमत्तसंयत और अपूर्वकरणसंयत के आहारकद्विक सहित देवगतिप्रायोग्य पूर्वोक्त तीस प्रकृतियों को बांधते हुये आहारकसप्तक की बंधावलिका नहीं बीतने पर पंचानवै प्रकृतिक संक्रमस्थान तीस प्रकृतिक पतद्ग्रह में संक्रांत होता है ।