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संक्रमकरण ]
[ ५३ तेच्चिय इत्यादि अर्थात् छब्बीस, पच्चीस और तेईस प्रकृति रूप पतद्ग्रहस्थानों में वे ही एक सौ दो आदि छियानवै प्रकृति रहित और बियासी प्रकृति सहित पांच संक्रमस्थान संक्रांत होते हैं, यथा – एक सौ दो, पंचानवै, तिरानवै, चौरासी और बियासी प्रकृतिक संक्रमस्थान । इनमें से पहले छब्बीस प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में संक्रमित होने का विचार करते हैं -
नारकों को छोड़कर एकेन्द्रिय आदि जीवों के एक सौ दो प्रकृतियों की सत्ता वाले और पंचानवै प्रकृतियों की सत्ता वाले तैजसशरीर, कार्मण, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, वर्णादिचतुष्क, एकेन्द्रियजाति, हुंडकसंस्थान, औदारिकशरीर, तिर्यंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी, स्थावर, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर--अस्थिर में से कोई एक, शुभ-अशुभ में से कोई एक, दुर्भग, अनादेय, अयश:कीर्ति, पराघात, उच्छ्वास, आतप और उद्योत में से कोई एक, इन एकेन्द्रिय योग्य छब्बीस प्रकृतियों को बांधते हुये एक सौ दो और पंचानवै प्रकृतिक संक्रमस्थान छब्बीस प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में संक्रांत होता है। देवों को छोड़कर उन्हीं एकेन्द्रिय आदि तेरानवै प्रकृतियों की सत्ता वाले जीवों के और देव, नारक जीवों को छोड़कर चौरासी प्रकृतियों की सत्ता वाले उन्हीं एकेन्द्रियादि जीवों के पूर्वोक्त छब्बीस प्रकृतिक स्थान को बांधते हुये तेरानवै प्रकृतिक संक्रमस्थान और - चौरासी प्रकृतिक संक्रमस्थान उसी छब्बीस प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में संक्रांत होते हैं तथा देव, नारक और मनुष्य को छोड़कर उन्हीं एकेन्द्रिय आदि बियासी प्रकृतियों की सत्ता वाले जीवों के पूर्वोक्त छब्बीस प्रकृतिक स्थान को बांधते हुये बियासी प्रकृतिक संक्रमस्थान छब्बीस प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में संक्रांत होता है।
पच्चीस और तेईस प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में उक्त पांचों संक्रमस्थान इस प्रकार जानना चाहिये -
एकेन्द्रियपर्याप्तप्रायोग्य पूर्वोक्त छब्बीस प्रकृतियों को आतप अथवा उद्योत से रहित पच्चीस प्रकृतियों को बांधने वाले एक सौ दो, पंचानवै, तेरानवै, चौरासी और बियासी प्रकृतियों की सत्ता वाले एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय आदि जीवों के यथाक्रम से उसी पच्चीस प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में एक सौ दो, पंचानवै, तेरानवै, चौरासी और बियासी प्रकृतिक संक्रमस्थान संक्रांत होते हैं।
__ अथवा अपर्याप्त विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य के योग्य तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णादिचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, द्वीन्द्रियादि कोई एक जाति, हुंडकसंस्थान, सेवार्तसंहनन,
औदारिकशरीर, औदारिकअंगोपांग तिर्यंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर-अस्थिर में से कोई एक, शुभ-अशुभ में से कोई एक, दुर्भग, अनादेय, अयशःकीर्तिरूप पच्चीस प्रकृतियों के बंधक एक सौ दो प्रकृतियों की सत्तावाले एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के पच्चीस प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में एक सौ दो आदि पांच संक्रमस्थान संक्रांत होते हैं।
अपर्याप्त एकेन्द्रियादि प्रायोग्य वर्णादिचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुंडकसंस्थान, औदारिकशरीर, एकेन्द्रिय जाति तिर्यंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी, बादर, सूक्ष्म में से कोई एक, स्थावर,