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संक्रमकरण ]
[ ५५ इसका अभिप्राय यह है कि स्थितिसंक्रम दो प्रकार का होता है - १- मूल प्रकृति स्थितिसंक्रम, २- उत्तर प्रकृति स्थितिसंक्रम। इनमें से मूल प्रकृति स्थितिसंक्रम आठ प्रकार का है - यथा - ज्ञानावरण का स्थितिसंक्रम, दर्शनावरण का स्थितिसंक्रम, यावत् अन्तराय का स्थितिसंक्रम। उत्तर प्रकृति स्थितिसंक्रम एक सौ अट्ठावन प्रकार का है यथा - मतिज्ञानावरण का स्थितिसंक्रम, श्रुतज्ञानावरण का स्थितिसंक्रम, यावत् वीर्यान्तराय का स्थितिसंक्रम। इस प्रकार तदेवं 'मूलूत्तर पगईउ' इत्यादि पद से स्थितिसंक्रम के भेदों का कथन किया गया।
___ 'उव्वट्टियाउ' इत्यादि पदों के द्वारा स्थितिसंक्रम का विशेष लक्षण कहा है। वह स्थितिसंक्रम तीन प्रकार का होता है - १. उद्वर्तनारूप, २. अपवर्तनारूप और ३. अन्यप्रकृतिकरणरूप। इन तीनों का अभिप्राय इस प्रकार है कि -
१ कर्मपरमाणुओं के अल्पस्थितिकाल को बढ़ाकर दीर्घकालरूप से स्थापित करना उद्वर्तनासंक्रम है -तत्रकर्मपरमाणूनां ह्रस्वस्थितिकालतामपहाय दीर्घकालतया व्यवस्थापनमुद्वर्तना।
२ कर्मपरमाणुओं के दीर्घस्थितिकाल को घटाकर अल्पस्थितिकाल रूप से स्थापित करना अपवर्तना संक्रम है - कर्मपरमाणूनामेव दीर्घस्थितिकालतामपहाय ह्रस्वस्थितिकालतया व्यवस्थापनमपवर्तना।
३ संक्रमण की जाने वाली प्रकृति की स्थितियों को पतद्ग्रहप्रकृति में ले जाकर स्थापित करना वह प्रकृत्यन्तरनयन रूप संक्रम है - यत्पुनः संक्रम्यमाण प्रकृतिस्थितीनां पतद्ग्रहप्रकृतौ नीत्वा निवेशनं तत्प्रकृत्यन्तरनयनं।
स्थितियों को अन्यत्र स्थापित करना, इसका अर्थ यह है कि स्थितियुक्त कर्म परमाणुओं को अन्यत्र स्थापित करना समझना चाहिये। क्योंकि कर्मदलिकों को छोड़कर स्थिति का अन्यत्र ले जाना सम्भव नहीं है। यह विशेष लक्षण सामान्य लक्षण के होने पर ही जानना चाहिये किन्तु अपवाद होने से सर्वथारूप से नहीं। क्योंकि मूलप्रकृतियों के परस्पर संक्रम का निषेध किया गया है। इसलिये उनका अन्यप्रकृत्यन्तरनयन लक्षण वाला स्थितिसंक्रम नहीं होता है किन्तु उद्वर्तना और अपवर्तना लक्षण रूप दो ही संक्रम होते हैं। उत्तर प्रकृतियों के तीनों ही संक्रम जानना चाहिये। उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम का परिमाण
___ इस प्रकार स्थितिसंक्रम और विशेष लक्षण का कथन करने के बाद अब उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम के परिमाण का प्रतिपादन करते हैं -
तीसासत्तरि चत्ता - लीसा वीसुदहिकोडिकोडीणं। जेट्ठा आलिगदुगहा, सेसाण वि आलिगतिगूणा (णो)॥ २९॥