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सव्वासिं जट्टिइगो, आवलिगो सो अहाउगाणं तु । बंधुक्कोसुक्कोसो, साबाहठिईए जट्ठिइगो ॥३१॥
शब्दार्थ
सभी प्रकृतियों का, जट्टिइगो – यत्स्थिति संक्रम, आवलिगो
सव्वासिं आवलिका सहित, सो वह, अह अब, आउगाणं - आयुकर्म की, तु और, बंधु बंधोत्कृष्ट, उक्कोसो – उत्कृष्ट, साबाहठिईए – अबाधा सहित जट्ठिइगो – यत्स्थिति ।
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कर्मप्रकृति
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गाथार्थ – सभी प्रकृतियों का यत्स्थितिसंक्रम एक आवलि सहित होता है और आयुकर्म की जो बंधोत्कृष्टा स्थिति है, वही अबाधासहित यत्स्थिति है ।
- विशेषार्थ – सभी प्रकृतियों का यत्स्थितिसंक्रम एक अवालिका सहित जानना चाहिये। संक्रमणकाल में जो स्थिति विद्यमान होती है, वह यत्स्थिति कहलाती है - संक्रमणकाले या स्थितिर्विद्यते सा यत्स्थितिः इत्युच्यते । वह यत्स्थिति जिस संक्रम की होती है, वह संक्रम यत्स्थितिक कहलाता है। यहां पर या स्थितिर्विद्यते यस्या सौ यत्स्थितिक इति, इस प्रकार का बहुब्रीहि समास है । वह आवलिकाल से सहित आवलिकाल जानना चाहिये । उक्त कथन का तात्पर्य यह है
पूर्व में कहा गया संक्रम एक आवलि से सहित होता हुआ जितना होता है, उतनी स्थिति उस प्रकृति की संक्रमकाल में ही होती है। उससे बंधोत्कृष्टा प्रकृतियों की एक आवलि से हीन और संक्रमोत्कृष्टा प्रकृतियों की दो आवलि से हीन शेष सर्वस्थिति संक्रमकाल में विद्यमान जानना चाहिये । वह इस प्रकार है
संक्लेशदि' कारण के वश उत्कृष्ट स्थिति को बांध कर बंधावलिका के व्यातीत हो जाने पर उदयावलि से ऊपर की स्थिति को अन्य प्रकृति में संक्रमण करना प्रारम्भ करता है । इसलिये बंधोत्कृष्टा प्रकृतियों की एक आवलि से हीन शेष सर्वस्थिति संक्रमकाल में पाई जाती है । किन्तु संक्रमोत्कृष्टा प्रकृतियों की बंधावलि और संक्रमावलि के बीत जाने पर उदयावलि से आगे वर्तमान स्थिति अन्य प्रकृति में संक्रांत की जाती है। इसलिये संक्रमोत्कृष्टा प्रकृतियों की दो आवलि से हीन शेष सर्वस्थिति संक्रमकाल में पाई जाती है । आयुकर्म की चारों प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति बंधोत्कृष्टा है अथवा संक्रमोत्कृष्टा है ? उत्तर - बंधोत्कृष्टा ही है। इसके लिये गाथा में संकेत दिया है – 'अहाउगाणमित्यादि' अर्थात् आयुकर्म की बंधोत्कृष्टा स्थिति ही सम्भव है, संक्रमोत्कृष्टा नहीं। क्योंकि -
प्रश्न
मोहदुगाउगमूलप्पगडीण न परोप्परंमि संकमणं । अर्थात् मोहद्विक, आयुकर्म और मूल प्रकृतियों का परस्पर संक्रम नहीं होता है तथा 'साबाहठिई' इत्यादि, अर्थात् आयुकर्म की प्रकृतियों की अबाधा सहित जो
१. यहां आदि शब्द ग्रहण करने का कारण यह है कि बंधोत्कृष्टा शुभ आयुत्रिक की उत्कृष्ट स्थिति विशुद्धि के द्वारा बांधी जाती है । अतः विशुद्धि का ग्रहण करने के लिये आदि शब्द लिया जाना संभव है- 'मुत्तंनर अमरतिरि आऊं' इति वचनात् ।