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अब सास्वादन और मिश्रदृष्टि के पतद्ग्रह, संक्रम स्थानों को बतलाते हैं -
२.सास्वादन गुणस्थान - सास्वादन सम्यग्दृष्टि के शुद्ध दृष्टि का अभाव होने से दर्शनमोहत्रिक का संक्रम नहीं होता है। इसलिये उसके सदैव इक्कीस प्रकृति रूप पतद्ग्रहस्थान में पच्चीस प्रकृतिरूप स्थान ही संक्रांत होता है।
३. मिश्र गुणस्थान – सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव के भी शुद्ध दृष्टि का अभाव होने से दर्शनत्रिक का संक्रम नहीं होता है। इसलिये अट्ठाईस प्रकृतियों की सत्ता वाले या सत्ताईस प्रकृतियों की सत्ता वाले जीव के पच्चीस प्रकृतिरूप संक्रम और चौबीस की सत्ता वाले जीव के पुनः इक्कीस प्रकृतिरूप संक्रमस्थान बारह कषाय पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा
और एक युगलरूप सत्रह प्रकृतियों के समुदाय रूप पतद्ग्रह में संक्रांत होता है। जिसको निम्नलिखित प्रारूप द्वारा स्पष्टता से समझा जा सकता है -
संक्रमकरण ]
पतद्ग्रहस्थान
पतद्ग्रह प्रकृतियां
|संक्रम स्थान
संक्रम प्रकृतियां
| सत्ता
संक्रम काल | स्वामी
१७ प्रकृतिक | १२ कषाय पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, | २५ प्रकृतिक | १६ कषाय और ९
| २८/ | अन्तर्मुहूर्त
। मिश्रदृष्टि
नोकषाय = २५
कोई एक युगल = १७
| मिश्रदृष्टि
२१ प्रकृतिक | १२ कषाय (अनंतानु- | २४ । अन्तर्मुहूर्त
बंधी को छोड़ कर) ९ नोकषाय = २१
. [
१. यहां २८ प्रकृतियों की सत्ता होती है और संक्रमाल छह आवलिका प्रमाण है।
२१