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इस प्रकार मिथ्यादृष्टि के बाईस प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में सत्ताईस, छब्बीस और तेईस प्रकृतिक संक्रमस्थान । होते हैं तथा पूर्व में इक्कीस प्रकृतिक पतद्ग्रह स्थान में पच्चीस प्रकृतिक स्थान का संक्रम कहा है, अत: मिथ्यादृष्टि में शेष .. संक्रम और पतद्ग्रह स्थान संभव नहीं हैं।
सरलता से समझने के लिये उक्त कथन का प्रारूप इस प्रकार है -
पतद्ग्रहस्थान
पतद्ग्रह
कातयां
| संक्रमस्थान | संक्रम प्रकृतियां | सत्ता
संक्रमकाल | स्वामी
त्रिपुंजी:
२२ प्रकृतिक | मिथ्यात्व, १६ कषाय अन्यतर वेद | २७ प्रकृतिक | मिथ्यात्व मोहनीय के | २८ | पल्योपम का भय,जुगुप्सा, युगलद्विक में से कोई
बिना
असंख्यातवां भाग| मिथ्यात्वी एक २२ प्रकृतिक २६ प्रकृतिक | मिथ्यात्व, सम्यक्त्व मोह| २७ ।।
उद्वलित सम. बिना
मोह. द्विपुंजी २२ प्रकृतिक
२३ प्रकृतिक | मिथ्यात्व अनंतानुबंधी | २८ | एक आवलिका अनन्ता. की चतुष्क बिना
प्रथम बंधाव
लिका में २१ प्रकृतिक | मिथ्यात्व रहित शेष पूर्वोक्त २५ प्रकृतिक | दर्शनत्रिक रहित | २६ | अनादि अनंतादि | अनादि
३ भंग
मिथ्यात्वी आदि
[कर्मप्रकृति