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संक्रमकरण ]
___ [ ४१ एक में संक्रांत होती है, ऐसा जानना चाहिये।
विशेषार्थ – बाईस प्रकृतिक, पन्द्रह प्रकृतिक, ग्यारह प्रकृतिक और उन्नीस प्रकृतिक इन चार पतद्ग्रहस्थानों में छब्बीस और सत्ताईस प्रकृतियों का संक्रम होता है। जिस का क्रम इस प्रकार है कि मिथ्यादृष्टि के बाईस में, देशविरत के पन्द्रह में, प्रमत्त और अप्रमत्त विरत के ग्यारह में और अविरत सम्यग्दृष्टि के उन्नीस में संक्रम होता है।
पच्चीस प्रकृतिरूप संक्रमस्थान का सत्रह और इक्कीस प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थानों में संक्रम होता है। सत्रह प्रकृतिकरूप स्थान में मिश्रदृष्टि के, इक्कीस प्रकृतिकरूप स्थान में मिथ्यादृष्टि के और सास्वादन सम्यग्दृष्टि के संक्रम होता है। यह पच्चीस प्रकृतिकरूप स्थान का संक्रम सत्रह और इक्कीस प्रकृतिकरूप स्थानों में नियम से चारों ही गतियों में पाया जाता है। सास्वादन सम्यग्दृष्टि के सत्रह प्रकृतिक स्थान में और इक्कीस प्रकृतिकरूप स्थान में पच्चीस प्रकृतिकरूप स्थान का संक्रम नियम से दर्शनमोहनीय के तीन प्रकार (पुंज)करने पर जानना चाहिये। मिथ्यादुष्टि गुणस्थान में तो इक्कीस प्रकृतिक स्थान में पच्चीस प्रकृतियों का संक्रम अनादि मिथ्यादृष्टि के भी होता है।
तेईस प्रकृतिरूप स्थान का संक्रम बाईस, पन्द्रह, सात, ग्यारह और उन्नीस प्रकृतिरूप पांच पतद्ग्रह स्थानों में होता है। उनमें से बाईस में मिथ्यादृष्टि के, पन्द्रह में देशविरत के सात में उपशमश्रेणी में वर्तमान और
औपशमिक सम्यग्दृष्टि के, ग्यारह में प्रमत्त और अप्रमत्त विरत के और उन्नीस में अविरतसम्यग्दृष्टि के संक्रम होता है। ये पांचों ही पतद्ग्रहस्थान पंचेन्द्रियों में ही होते हैं।
बाईस प्रकृतिक स्थान चौदह, दस, सात, ग्यारह और अठारह प्रकृतिरूप पतद्ग्रह स्थान में संक्रम के योग्य है। उनमें से देशविरत के चौदह प्रकृतिरूप स्थान में, प्रमत्त और अप्रमत्त विरत के दस प्रकृतिरूप स्थान में, उपशमश्रेणी में वर्तमान औपशमिक सम्यग्दृष्टि के सात में और अविरतसम्यग्दृष्टि के अठारह प्रकृतिरूप पतद्ग्रहस्थान में संक्रम होता है। बाईस प्रकृतिरूप संक्रमस्थान नियम से मनुष्यगति में होता है, अन्यत्र नहीं और वह नियम से सम्यक्त्व एवं सम्यग्मिथ्यात्व इन दो प्रकार की प्रकृतियों के होने पर ही होता है।
तेरह, नौ, सात, सत्रह पांच और इक्कीस प्रकृतिरूप छह पतद्ग्रहस्थानों में इक्कीस प्रकृतिरूप संक्रमस्थान संक्रांत होता है। किन जीवों के होता है ? तो वह शुद्ध सास्वादन और मिश्र में होता है - सुद्ध सासाण मीसेसु।अर्थात् शुद्ध यानि अविरतसम्यग्दृष्टि आदि विशुद्ध सम्यग्दर्शन वालों के, सास्वादन सम्यग्दृष्टियों
१. यहां 'भी' शब्द का प्रयोग इसलिये किया है कि सम्यक्त्व, मिश्र की उद्वलना किए हुये २३ की सत्ता वाले मिथ्यादृष्टि के भी २१ प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में २५ प्रकृतियों का संक्रम होता है।