________________
४६
]
[ कर्मप्रकृति
तेवीस - पंचवीसा, छब्बीसा अट्ठवीस-गुणतीसा।
तीसेक्क तीसएगं, पडिग्गहा अट्ठ नामस्स॥ २४॥ शब्दार्थ – तेवीस - तेईस, पंचवीस - पच्चीस, छब्बीसा - छब्बीस, अट्ठवीस - अट्ठाईस, गुणतीसा - उनतीस, तीसेक्तीसएगं - तीस, इकतीस, एक, पडिग्गहा – पतद्ग्रहस्थान, अट्ठ - आठ, नामस्स – नामकर्म के।
गाथार्थ – तेईस, पच्चीस, छब्बीस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस, इकतीस और एक प्रकृतिरूप ये आठ नामकर्म के पतद्ग्रहस्थान होते हैं।
_ विशेषार्थ – गाथार्थ के अनुसार ही जानना चाहिये। पतद्ग्रहस्थानों में संक्रांत होने वाली प्रकृतियां
_नामकर्म के संक्रमस्थानों और पतद्ग्रहस्थानों की प्रकृति संख्या बतलाने के बाद कौन-कौन सी प्रकृतियां किस-किस पतद्ग्रहस्थान में संक्रांत होती हैं अब इसका विचार करते हैं -
एक्कगदुगसय पणचउ-नउई ता तेरसूणिया वावि। परभवियबंधवोच्छेय, उपरि सेढीए एक्कस्स ॥२५॥ तिगदुगसयं छपंचग-नई य जइस्स एक्कतीसाए। एगंतसेढिजोगे, वज्जिय तीसिगुणतीसासु ॥२६॥ अट्ठावीसाए वि, ते बासीइतिसयवज्जिया पंच।
ते च्चिय बासीइजुया, सेसेसुं छन्नउई य वजा॥२७॥ शब्दार्थ - एक्गदुगसय – एक और दो अधिक सौ, पणचउनउई – पांच चार अधिक नव्वै, ता - उसके बाद, तेरसूणियावावि – तेरह कम वे ही, परभवियबंधवोच्छेय - परभव सम्बन्धी बंधविच्छेद होने के, उपरि (ऊपर) बाद, सेढीए - श्रेणी में, एक्कस्स – एक का।
तिगदुगसयं – तीन दो अधिक सौ, छपंचगनउई - छह, पांच अधिक नव्वै, य - और, जइस्स- यति के, एक्कतीसाए - इकतीस में, एगंतसेढिजोगे - एकान्त श्रेणी योग्य, वज्जिय - छोड़कर, तीसिगुणतीसासु - तीस और उनतीस में।
... अट्ठावीसाए - अट्ठाईस में, वि - भी, ते - पूर्वोक्त वे, बासीइ - बियासी, तिसय - एक सौ तीन, वज्जिया – छोड़कर, पंच – पांच, ते – वे, च्चिय - ही, बासीइजुया - बियासी सहित, सेसेसुं - शेष में, छन्नई - छियानवै, य - और, वजा – छोड़कर।