________________
संक्रमकरण ]
[ १७ संक्रांत होती हैं (११-२)।
उसी क्षपक के चारित्रमोहनीय का अन्तरकरण करने पर संज्वलन लोभ का पूर्वोक्त युक्ति से संक्रम नहीं होता है। इसलिये उसके निकाल देने पर शेष बारह प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (१२-१)। अथवा उपशमश्रेणी में वर्तमान क्षायिक सम्यग्दृष्टि के पूर्वोक्त अठारह प्रकृतियों में से छह नो कषायों के उपशांत होने पर शेष बारह प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (१२-२)। इसके बाद पुरुषवेद के उपशांत होने पर पूर्वोक्त बारह प्रकृतियों में से इसको कम कर देने पर ग्यारह प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (१३१)। अथवा उपर्युक्त बारह प्रकृतियों में से क्षपक जीव के नपुंसकवेद के क्षय होने पर ग्यारह प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (१३-२)। औपशमिक सम्यग्दृष्टि के उपशमश्रेणी में पूर्वोक्त तेरह प्रकृतियों में से अप्रत्याख्याना-प्रत्याख्यानावरण क्रोधद्विक के उपशांत होने पर शेष ग्यारह प्रकृतियां संक्रम में प्राप्त होती हैं (१३-३)।
क्षपकश्रेणी में ग्यारह प्रकृतियों में से स्त्रीवेद के क्षय होने पर शेष दस प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (१४-१)। उपशमश्रेणी में वर्तमान औपशमिक सम्यग्दृष्टि के ग्यारह प्रकृतियों में से संज्वलन क्रोध के उपशांत होने पर शेष दस प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (१४-२)।
उपशमश्रेणी में वर्तमान क्षायिकसम्यग्दृष्टि के पूर्वोक्त (ग्यारह) प्रकृतियों में से अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण रूप क्रोधद्विक के उपशांत होने पर शेष नौ प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (१५)। उसी जीव के संज्वलन क्रोध के उपशांत होजाने पर आठ प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (१६-१)। अथवा उपशमश्रेणी में वर्तमान औपशमिक सम्यग्दृष्टि के पूर्वोक्त दस प्रकृतियों में से अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरणरूप मानद्विक के उपशांत होने पर शेष आठ प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (१६-२)।
उसी जीव के संज्वलन मान के उपशांत होने पर शेष सात प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (१७)।
उपशमश्रेणी में वर्तमान क्षायिक सम्यग्दृष्टि के पूर्वोक्त आठ प्रकृतियों में से अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरणरूप मानद्विक के उपशांत होने पर शेष छह प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (१८)। उसी जीव के संज्वलन मान के उपशांत होने पर चार प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (१९-१)। अथवा उपशमश्रेणी में वर्तमान औपशमिक सम्यग्दृष्टि के पूर्वोक्त सात प्रकृतियों में से अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरणरूप माया के उपशांत होने पर शेष पांच प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (१९-२)। उसी जीव के संज्वलन माया के उपशांत होने पर चार प्रकृतियां संक्रांत होती हैं (२०-१)। अथवा क्षायिक सम्यग्दृष्टि क्षपक के पूर्वोक्त दस प्रकृतियों में से हास्यादि छह नोकषायों के क्षय होने पर शेष चार प्रकृतियां संक्रांत होती