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कुमारसंभव
509 पर इतनी देर में तो महादेवजी की आँखों से निकलने वाली उस आग ने कामदेव को जलाकर राख ही तो कर डाला। मदनेन विनकृता रतिः क्षणमात्रं किल जीवितेति मे।। 4/21 कामदेव के न रहने पर रति थोड़ी देर तक जीती रह गई। अस्त्पहार्यं मदनस्य निग्रहात्पिनाक पाणिं पतिमाप्तुमिच्छति। 5/53 उन महादेव जी से विवाह करने पर तुली है, जो अब कामदेव के नष्ट हो जाने
पर केवल रूप दिखाकर नहीं रिझाए जा सकते। 10. मनोभव :-पुं० [मनसः मनसि वा भवतीति । भू+ अच् । मनसः भवः उत्पत्ति
यस्येति क] कन्दर्प, कामदेव। निवेशयामास मधु द्विरेफान्नामाक्षराणीव मनोभवस्य । 3/27 उन पर उसने जो भौरे बैठाए वे ऐसे लगते थे, मानो उन बाणों पर कामदेव के नाम के अक्षर लिखे हुए हों। तथा समक्षं दहता मनोभवं पिनाकिना भग्न मनोरथा सती । 5/1 महादेव जी ने देखते-देखते कामदेव को भस्म कर डाला, यह देखकर पार्वती जी की सब आशाएँ धूल में मिल गईं। वृत्तिस्तयोः पाणि समागमेव समं विभक्तव मनोभवस्य ।। 7/77 ऐसा जान पड़ा, मानो उन दोनों का हाथ मिलाकर कामदेव ने दोनों को एक साथ
अपने वश में कर लिया हो। 11. मन्मथ :-पुं० [मनो मनाति विकरोतीति । मन्थ्+पचाद्य च् ! पृषोदरादित्वात्
साधुः ] कामदेव। मधुश्च ते मन्मथ साहचर्यादसावनुक्तोऽपि सहाय एव । 3/21 हे कामदेव ! हमने तुम्हारी सहायता के लिए वसन्त का नाम इसलिये नहीं लिया कि वह तो तुम्हारा साथी है ही। ज्ञात मन्मथ रसा शनैः शनैः सा मुमोच रति दुःख शीलताम्। 8/13 जब पार्वती जी को भी संभोग का रस मिलने लगा, तब इनकी भी झिझक धीरे-धीरे जाती रही। एवमिन्द्रिय सुखस्य वर्त्मनः सेवनादनुगृहीत मन्मथः। 4/20
इस प्रकार जवानी का रस लेकर महादेव जी ने कामदेव पर बड़ी कृपा की। 12. रति पण्डित :-पुं० [रतेः पण्डितः] कामदेव।
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