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कालिदास पर्याय कोश
कार्य 1. कायॆ - [कृश् + ष्यञ्] पतलापन, दुर्बलता, पतला, दुबला।
सौभाग्यं ते सुभग विरहावस्थया व्यञ्जयन्ती कार्यं येन त्यजति विधिना स त्वयैवोपपाद्यः। पू० मे० 31 अपनी यह वियोग की दशा दिखाकर यह बता रही होगी कि मैं तुम्हारे वियोग में सूखी जा रही हूँ। देखो! तुम ऐसा उपाय करना कि उस बेचारी का दुबलापन
दूर हो जाय। 2. तनु - [तन् + उ] पतला, दुबला, कृश।
स्निग्धाः सख्यः कथमपि दिवा तां न मोक्ष्यन्ती तन्वी मेकप्रख्या भवति हि जगत्यङ्गनानां प्रवृत्तिः। उ० मे० 29 उसकी प्यारी सखियाँ, उसकोमल (दबले) देहवाली को दिन में कभी अकेली नहीं छोड़ेंगी, क्योंकि संसार में सभी स्त्रियाँ अपनी सखियों के दुख में कभी उनका साथ नहीं छोड़ती।
कीर्ति 1. कीर्ति - [कृत् + क्तिन्] यश, प्रसिद्धि, कीर्ति।
स्रोतोमूर्त्या भुवि परिणतां रन्तिदेवस्य कीर्तिम्। पू० मे० 49
जो राजा रन्तिदेव की कीर्ति बनकर धरती पर नदी के रूप में बह रही है। 2. यश - [अश् स्तुतौ असुन् धातोः युट् च्] प्रसिद्धि, ख्याति,
कीर्ति। प्रालेया।रुपतटमतिक्रम्य ताँस्तान्विशेषान्हंसद्वारं भृगुपति यशोवर्त्म यत्क्रौञ्चरन्ध्रम्। पू० मे० 61 हिमालय पर्वत के आस-पास के सुहावने स्थानों को देखकर तुम उस क्रौञ्चरंध्र में से होते हुए उत्तर की ओर जाना जिसमें से होकर हंस, मानसरोवर की ओर जाते हैं और जिसे परशुराम जी, अपने बाण से छेदकर अपना नाम अमर कर गये हैं। अक्षय्यान्तर्भवननिधयः प्रत्यहं रक्तकण्ठैः उद्गायद्भिर्धन पति यशः किंनरैर्यत्र सार्धम्। उ० मे० 10
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