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ऋतुसंहार
839 हुताग्निकल्पैः सवितुर्गभस्तिभिः कलापिन: क्लान्तशरीर चेतसः। 1/16 हवन की अग्नि के समान जलते हुए सूर्य की किरणों से जिन मोरों के शरीर
और मन दोनों सुस्त पड़ गए हैं। 5. मयूख - [मा + ऊख, मयादेशः] प्रकाश किरण, रश्मि, अंशु, कांति, दीप्ति,
किरण। रवेर्मयूखैरभितापितो भृशं विदह्यमानः पथि तप्त पांसुभिः। 1/13 सूर्य की किरणों (धूप) से एकदम तपा हुआ और पैड़ें की गर्म धूल से झुलसा हुआ यह साँप। रवेर्मयूखैरभितापितो भृशं वराहयूथो विशतीव भूतलम्। 1/17 सूर्य की किरणों (धूप) से एकदम झुलसा हुआ यह जंगली सुअरों का झुंड
मानो धरती में घुसा जा रहा है। 6. मरीचि - [मृ + इचि] प्रकाश की किरण।
नेत्रोत्सवो हृदयहारिमरीचिमालः प्रह्लादकः शिशिरसीकरवारिवर्षी। 3/9 आँखों को भला लगने वाले जिस चंद्रमा की किरणें मन को बरबस अपनी ओर खींच लेती हैं, वही सुहावना और ठंडी फुहार बरसाने वाला चंद्रमा। न चन्दनं चन्द्रमरीचिशीतलं न हर्म्यपृष्ठं शरदिन्दुनिर्मलम्। 5/3 न किसी को चंद्रमा की किरणों से ठंडाया हुआ चंदन ही अच्छा लगता है, न शरद के चंद्रमा के समान निर्मल छतें सुहाती हैं। माभि - किरण, प्रकाश किरण। तुषारसंघातनिपातशीतलाः शशाङ्कमाभिः शिशिरीकृताः पुनः। 5/4 घने पाले से कड़कड़ाते जाड़ों वाली, चंद्रमा की किरणों से और भी ठंडी बनी हुई रातों में।
मयूर 1. कलापिन - [कलाप + इनि] मोर।
हुताग्निकल्पैः सवितुर्गभस्तिभिः कलापिन: क्लान्त शरीर चेतसः। 1/16 हवन की अग्नि के समान जलते हुए सूर्य की किरणों से जिन मोरों के शरीर और मन दोनों सुस्त पड़ गए हैं।
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