Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 02
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 381
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 846 2. मृगेन्द्र [ मृग् + क + इन्द्र:] सिंह, शेर। - www. kobatirth.org 1. गजगवयमृगेन्द्रा वह्निसंतप्तदेहा सुहृद इव द्वन्द्वभावं विहाय । 1/27 आग से घबराए हुए और झुलसे हुए हाथी, बैल और सिंह आज मित्र बनकर साथ-साथ इकट्ठे होकर । 3. मृगेश्वर [ मृग् + क + ईश्वर : ] सिंह | न हन्त्यदूरेऽपि गजान्मृगेश्वरो विलोलजिह्वश्चलिताग्रकेसरः । 1/14 हाथियों के पास होने पर भी यह सिंह उन्हें मार नहीं रहा है, अपनी जीभ से अपने होठ चाटता जा रहा है और हाँफने से इसके कंधे के बाल हिलते जा रहे हैं। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2. अंबुज [ अम्ब + उण् + जम्] कमल । - कालिदास पर्याय कोश मृणाल अब्ज [ अप्सु जायते - अप् + उ] जल में उत्पन्न, कमल । मधुसुरभि मुखाब्जं लोचने लोध्रताम्रे नवकुरबकपूर्णः केशपाशो मनोज्ञः । 6/33 आसव से महकता हुआ स्त्रियों का कमल के समान मुख उनकी लोध जैसी लाल-लाल आँखें, नए कुरबक के फूलों से सजे हुए उनके सुंदर जूड़े। पादाम्बुजानि कलनूपुरशेखरैश्च नार्यः प्रहृष्टमनसोऽद्य विभूषयन्ति । 3 / 20 आजकल स्त्रियाँ बड़ी उमंग के साथ अपने कमल जैसे सुंदर पैरों में छम-छम बजने वाले बिछुए पहनती हैं। न नूपुरैर्हसरुतं भजद्भिः पादाम्बुजान्यम्बुजकान्तिभाञ्जि । 4/4 न अपने कमल जैसे सुंदर पैरों में हंस के समान ध्वनि करने वाले बिछुए ही डालती हैं। For Private And Personal Use Only गात्राणि कालीयकचर्चितानि सपत्रलेखानि मुखाम्बुजानि । 4/5 अपने शरीर पर चंदन मलती हैं, अपने कमल जैसे मुँह पर अनेक प्रकार के बेल-बूटे बनाती हैं। कूजद् द्विरेफोऽप्ययमम्बुजस्थः प्रियं प्रियाया: प्रकरोति चाटु | 6/16

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