Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 02
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 409
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 874 कालिदास पर्याय कोश शिरोरुह 1. अलक - [अल् + क्वुन्], बाल, धुंघराले बाल। कूर्पासकं परिदधाति नखक्षताङ्गी व्यालम्बिनीलललितालककुञ्चिताक्षी। 4/17 नखों के घावों से भरे हुए अंगों वाली और लटकती हुई सुंदर अलकों से ढकी हुई आँखों वाली स्त्री अपनी चोली पहनने लगी है। कर्णेषु योग्यं नवकर्णिकारं चलेषु नीलेष्वलकेष्वशोकम्। 6/6 कानों में लटके हुए कनैर के फूल और उनकी चंचल, काली घुघराली लटों में अशोक के फूल सुहावने लग रहे हैं। 2. केश - [क्लिश्यते क्लिश्नाति वा - क्लिश् + अन्, लोलोपश्च] बाल, सिर के बाल। कालागरुप्रचुरचन्दन चर्चिताङ्गः पुष्पावतंससुरभीकृतकेशपाशाः। 2/22 जिन के अंगों पर अगरू मिला-चंदन लगा हुआ है, जिनके बाल फूलों के गुच्छों से महक रहे हैं। केशान्नितान्तघननीलविकुञ्चिताग्रानापूरयन्ति वनिता नवमालतीभिः। 3/19 स्त्रियाँ अपनी घनी धुंघराली काली लटों में नये मालती के फूल गूंथ रही हैं। स्त्रस्तांसदेशलुलिताकुलकेशपाशा निद्रां प्रयाति मृदुसूर्यकराभितप्ता। 4/15 उसके कंधे झूल गए हैं, उसके बाल इधर-उधर बिखर गए हैं, और वह सूर्य की कोमल किरणों में धूप खाती हुई सो गई है। पीनोन्नतस्तनभरानतगात्रयष्ट्यः कुर्वन्ति केशरचनामपरास्तरुण्यः।4/16 जिन स्त्रियों के शरीर, मोटे और ऊँचे स्तनों के कारण झुक गए हैं, वे फिर से अपने बालों को सँवार रही हैं। उपसि वदनबिम्बैरंससंसक्तकेशैः श्रिय इव गृहमध्येसंस्थिता योषितोऽद्य। 5/13 इन दिनों प्रातः काल के समय स्त्रियों के कंधों पर फैले हए बालों वाले गोल-गोल मुखों को देखकर ऐसा लगता है मानो घर-घर में लक्ष्मी आ बसी हों। For Private And Personal Use Only

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