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ऋतुसंहार
893 क्वचित्सगर्भप्रमदास्तनप्रभैः समाचितं व्योम घनैः समन्ततः। 2/2 कहीं गर्भिणी स्त्री के स्तनों के समान पीले बादल आकाश में इधर-उधर छाए
निरस्तमाल्याभरणानुलेपनाः स्थिता निराशाः प्रमदाः प्रवासिनाम्। 2/12 परदेसियों की स्त्रियाँ अपनी माला, आभूषण, तेल, फुलेल, उबटन आदि सब कुछ छोड़कर गाल पर हाथ धरे बैठी हैं। नद्यो विशालपुलिनान्तनितम्बबिम्बा मन्दं प्रयान्ति समदाः प्रमदा इवाद्य। 3/3 इस ऋतु में नदियाँ भी उसी प्रकार धीरे-धीरे बही जा रही हैं, जैसे बड़े-बड़े नितंबों वाली कामिनियाँ चली जा रही हों, ऊँचे-ऊँचे रेतीले टीले ही उनके गोल नितंब हैं। ज्योत्स्नादुकूलममलं रजनी वृद्धिं प्रयात्यनुदिनं प्रमदेव बाला। 3/7 आजकल की रात चाँदनी की उजली साड़ी पहने हुए अलबेली बाला के समान दिन-दिन बढ़ती चली जा रही है। काञ्चीगुणैः काञ्चनरलचित्रैर्नो भूषयन्ति प्रमदा नितम्बान्। 4/4 न तो स्त्रियाँ अपने नितंबों पर सोने और रत्नों से जड़ी हुई करधनी ही पहनती
संहष्यमाणपुलकोरुपयोधरान्ता अभ्यञ्जनं विदधति प्रमदाः सुशोभाः। 4/18 जिनकी जाँघों और स्तनों पर रोमांच हो गया है, वे युवतियाँ बैठी अपने शरीर पर तेल मलवा रही हैं। प्रकामकामं प्रमदाजनप्रियं वरोरु कालं शिशिराह्वयं श्रुणुं। 5/1 हे सुंदर जाँघों वाली! सुनो जिस ऋतु में काम भी बहुत बढ़ जाता है, वह स्त्रियों की प्यारी शिशिर ऋतु आ पहुंची हैं। वापी जलानां मणिमेखलानां शशाङ्कभासां प्रमदाजनानाम्। 6/4 बावड़ियों के जल, मणियों से जड़ी करधनी, चाँदनी और स्त्रियाँ। पुष्पं च फुल्लं नवमल्लिकायाः प्रयान्ति कान्तिं प्रमदाजनानाम्। 6/6
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