Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 02
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 431
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 896 कालिदास पर्याय कोश आजकल लोग मोटे-मोटे कपड़े पहनकर और युवती स्त्रियों से लिपटकर दिन बिताते हैं। भ्रमन्ति मन्दं श्रमखेदितोरवः क्षपावसाने नवयौवनाः स्त्रियः। 5/7 वे युवती स्त्रियाँ, रात के परिश्रम से दुखती जाँघों के कारण प्रातः काल बड़े धीरे-धीरे चल रही हैं। कुर्वन्त्यशोका हृदयं सशोकं निरीक्ष्यमाणा नवयौवनानाम्। 6/18 उन अशोक के वृक्षों को देखते ही नवयुवतियों के हृदय में शोक होने लगता 14. वधू- [उह्यते पितृगेहात् पतिगृहं वह + उथक्] दुलहिन, पत्नी, भार्या, महिला, तरुणी, स्त्री। अपहृतमिव चेतस्तोयदैः सेन्द्रचापैः पथिकजनवधूनां तद् वियोगाकुलानाम्। 2/23 जिन बादलों में इंद्रधनुष निकल आया है, उन्होंने परदेसियों की उन स्त्रियों की सब सुध-बुध हर ली है, जो अपने प्यारों के बिछोह में व्याकुल हुई बैठी हैं। विकचनवकदम्बैः कर्णपूरं वूधनां रचयति जलदौघः कान्तवत्काल एषः। 2/25 जैसे कोई प्रेमी अपनी प्यारी के लिए ढंग-ढंग के आभूषण बनावे वैसे ही वर्षा काल भी ऐसा लगता है मानो वह अपनी प्रेमिका के लिए खिले हुए नए कदंब के फूलों के कर्णफूल बना रहा है। आपक्वशालिरुचिरानतगात्रयष्टिः प्राप्ता शरन्नवूधरिव रूप रम्या। 3/1 पके हुए धान से मनोहर शरीर वाली शरद ऋतु, नई ब्याही हुई रूपवती बहू के समान अब आ पहुंची हैं। कुमुदपि गतेऽस्तं लीयते चन्द्रबिम्बे हसितमिव वधूनां प्रोषितेषु प्रियेषु। 3/25 जैसे प्रिय के परदेस चले जाने पर स्त्रियों की मुस्कराहट चली जाती है, वैसे ही चंद्रमा के छिप जाने पर कोई सकुचा जाती है। सद्यो वसन्तसमयेन समाचितेयं रक्तांशुका नववधूरिव भाति भूमिः। 6/21 For Private And Personal Use Only

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