Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 02
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 432
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋतुसंहार 897 वसंत के दिनों में पृथ्वी ऐसी लग रही है, मानो लाल साड़ी पहने हुए कोई नई दुलहिन हो। लज्जान्वितं सविनयं हृदयं क्षणेन पर्याकुलं कुलगृहेऽपि कृतं वधूनाम्। 6/23 सती स्त्रियों के लाज और मर्यादा को भी थोड़ी देर के लिए अधीर कर दिया है। कुन्दैः सविभ्रमवधूहसितावदातैरुद्दयोतितान्युपवनानि मनोहराणि। 6/25 कामिनियों की मस्तानी हंसी के समान उजले कुंद के फूलों से चमकते हुए मनोहर उपवन। 15. वनिता - [वन् + क + टयप्] स्त्री, महिला। केशान्नितान्तघननीलविकुञ्चिताग्रान्आपूरयन्ति वनिता नवमालतीभिः। 3/19 स्त्रियाँ अपनी घनी धुंघराली काली लटों में नये मालती के फूल गूंथ रही है। काचिद्विभूषयन्ति दर्पणसक्तहस्ता बालातपेषु वनिता वदनारविन्दम्। 4/14 एक स्त्री हाथ में दर्पण लिए हुए प्रातः काल की धूप में बैठी अपने कमल जैसे मुँह का सिंगार कर रही है। 16. विलासिनी - [ विलासिन् + ङीप्] रमणी, हावभाव करने वाली स्त्री। विलासिनीनां स्तनशालिनीनां नालक्रियन्तेस्तनमण्डलानि। 4/2 इन दिनों अलबेली स्त्रियाँ अपने बड़े-बड़े गोल-गोल स्तनों को सजाती नहीं न बाहुयुग्मेषु विलासिनीनां प्रयान्ति सङ्गं बलयाङ्गदानि। 4/3 न तो ये कामिनियां अपनी दोनों भुजाओं पर कंगन और भुजबंध ही पहनती हैं। प्रिये प्रियङ्गः प्रियविप्रयुक्ता विपाण्डुतां याति विलासिनीव। 4/11 यह प्रियंगु की लता, वैसी ही पीली पड़ गई है, जैसे अपने पति से अलग होने पर युवती पीली पड़ जाती है। For Private And Personal Use Only

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