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ऋतुसंहार
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4.
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3. माला- हार, खज, गजरा,
पंक्ति ।
निरस्तमाल्याभरणानुलेपनाः स्थिता निराशाः प्रमदाः प्रवासिनाम्। 2/12 परदेसियों की स्त्रियाँ अपनी माला, आभूषण, तेल, फुलेल, उबटन आदि सब कुछ छोड़कर गाल पर हाथ धरे बैठी हैं।
मालाः कदम्बनवकेसरकेतकीभि
रायोजिताः शिरसि विभ्रति योषितोऽद्य। 2/21
इन दिनों नई केसर, केतकी और कदंब के नये फूलों की मालाएँ गूँथकर स्त्रियाँ अपने जूड़ों में बाँधती हैं।
शिरसि बकुलमालां मालतीभिः समेतां
विकसितनवपुष्पैर्यूथिका कुड्मलैश्च । 2/25
मानो जूही की नई-नई कलियों तथा मालती और मौलसिरी के फूलों की माला जूड़ों में लगाने के लिए गूँथ रहा हो ।
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कारण्डवाननविघट्टितवीचिमालाः कादम्बसारसकुलाकुलतीरदेशाः । 3/8 जिनकी लहरों की मालाएँ जल पक्षियों की चोंचों से टकराती जा रही हैं और जिनके तीर पर कंदब और सारस पक्षियों के झुंड घूम रहे हैं। अगरुसुरभिंधूपामोदित केशपाशं गलितकुसुममालं कुञ्चिताग्रं वहन्ती । 5/12 अगरू के धुएँ में बसी हुई अपनी बिना मालावाली घनी घुँघराली लटों को थामें उठ रही है।
स्त्रज[सृज्यते सृज् + क्विन्, नि] गजरा, पुष्पमाला, माला हार । गृहीतताम्बूलविलेपनस्त्रजः पुष्पासवामोदित वक्त्रपङ्कजा । 5/5
फूलों का आसव पीने से जिनका कमल जैसा मुँह सुगंधित हो गया है, वे पान खाकर, फुलेल लगाकर और मालाएँ पहनकर ।
5. हार - [ हृ + घञ् ] मोतियों की माला, हार, माला ।
नितम्बबिम्बैः सदुकूलमेखलैः स्तनैः सहाराभरणैः सचन्दनैः । 1/4 रेशमी वस्त्र और करधनी पड़े हुए नितंबों पर तथा हार और दूसरे गहने पड़े चंदन पुते स्तनों से।
पयोधराश्चन्दनपङ्कचर्चितास्तुषार गौरार्पित हारशेखरः । 1/6
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