Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 02
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 435
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 900 कालिदास पर्याय कोश दुमाः सपुष्पाः सलिलं सपऱ्या स्त्रियः सकामाः पवनः सुगन्धिः। 6/2 वृक्ष फूलों से लद गए हैं, जल में कमल खिल गए हैं, स्त्रियाँ मतवाली हो गई हैं, वायु में सुगंध आने लगी है। मध्येषु निम्नोजघनेषु पीनः स्त्रीणामनङ्गो बहुधास्थितोऽद्य। 6/12 इन दिनों कामदेव भी स्त्रियों के कमर में गहरापन बनकर और नितंबों में मोटापा बनकर आ बैठता है। हरिणी 1. मृगी - [मृग + ङीष्] हरिणी, मृगी। पर्यन्तसंस्थितमृगीनयनोत्पलानि प्रोत्कण्ठयन्त्युपवनानि मनांसि पुंसाम्। 3/14 जिन उपवनों में कमल जैसी आँखों वाली हरणियाँ जहाँ-तहां बैठी पगुरा रही हैं, उन्हें देखकर लोगों के मन हाथ से निकल जाते हैं। 2. हरिणी - [हरिण + जी] मृगी, मादा हरिण। तृणोत्करैरुद्गतकोमलाङ्कुरैश्चितानि नीलहरिणीमुखक्षतैः। 2/8 हरिणियों के मुँह की कुतरी हुई हरी-हरी घासों से छाए हुए। हार 1. आपीड - [आ + पीड् + घर, अच् वा] कंठहार, माला। रक्ताशोकविकल्पिताधरमधुर्मत्तद्विरेफस्वनः कुन्दापीडविशुद्धदन्तनिकरः प्रफुल्ल पद्माननः। 6/36 अमृत भरे अधरों के समान लाल आशोक से मतवाले भौरों की गूंज से, दाँतों की चमकती हुई पाँतों जैसे उजले कुंद के हारों से। 2. दाम - [दो + मनिन्] गजरा, हार, डोरी। निर्माल्यदाम परिभुक्तमनोज्ञगन्धं मनऽपनीय घननील शिरोरुहान्ताः।4/16 लंबे घने केशों वाले सिर से वह मुरझाई हुई माला उतार रही हैं, जिसकी मधुर सुगंध का आनंद वे रात में ले चुकी हैं। For Private And Personal Use Only

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