Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 02
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 419
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 884 www. kobatirth.org कालिदास पर्याय कोश 2. दिनकर [ द्युति तम:, दो (दी) + नक्, ह्रस्वः + करः] सूरज, सूर्य । दिनकरपरितोपक्षीणतोयाः समन्ताद् Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विदधति भयमुच्चैर्वीक्ष्यमाणा वनान्ताः । 1/22 आजकल वन तो और भी डरावने लगने लगे हैं क्योंकि सूर्य की गर्मी से चारों ओर का जल सूख गया है। 3. दिवसकर [ दीव्यतेऽत्र दिव् + असच् किक्व् + करः ] सूर्य । दिवसकरमयूखैर्बोध्यमानं प्रभाते वरयुवतिमुखाभं पङ्कजं जृम्भतेऽद्य । 3/25 प्रातः काल जब सूर्य अपनी किरणों से कमल को जगाता है, तब वह कमल सुंदरी युवती के मुख के समान खिल उठता है। 4. भानु [भा + नु] सूर्य, प्रकाश, चमक, प्रकाश किरण । विशुष्ककण्ठोद्गतसीकराम्भसो गभस्तिभिः भानुमतोऽनुतापितः । 1/15 पते हुए सूर्य की किरणों से तपे हुए और प्यास के कारण सूखे कंठ वाले हाथी बादल की फुहारों की तलाश में । निरुद्धवातायनमन्दिरोदरं हुताशनो भानुमतो गभस्तयः । 5/2 अपने घरों के भीतर खिड़कियाँ बंद करके, आग तापकर, सूर्य की किरणों की धूप खाकर दिन बिताते हैं । 5. रवि [रु+ इ] सूर्य । रवेर्मयूखैरभितापितो भृशं विदह्यमानः पथितप्तपांसुभिः । 1 / 13 सूर्य की किरणों से एकदम तपा हुआ और पैंड़े की गर्म धूल से झुलसा हुआ । रवेर्मयूखैरभितापितो भृशं वराहयूथो विशतीव भूतलम् । 1/17 सूर्य की किरणों से एकदम झुलसा हुआ जंगली सुअरों का झुंड ऐसा लगता है मानो धरती में घुसा जा रहा हो। - रविप्रभोद्भिन्नशिरोमणिप्रभा विलोलजिह्वाद्वयलीढमारुतः । 1/20 जिसकी मणि सूर्य की चमक से और भी चमक उठी है, वह अपनी लपलपाती हुई दोनों जीभों से पवन पीता जा रहा है। 6. विवस्वत [ विशेषेण वस्ते आच्छादयति वि + वस् + क्विप् + मतुप् ] सूर्य । For Private And Personal Use Only

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