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कालिदास पर्याय कोश
2. दिनकर [ द्युति तम:, दो (दी) + नक्, ह्रस्वः + करः] सूरज, सूर्य । दिनकरपरितोपक्षीणतोयाः समन्ताद्
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विदधति भयमुच्चैर्वीक्ष्यमाणा वनान्ताः । 1/22
आजकल वन तो और भी डरावने लगने लगे हैं क्योंकि सूर्य की गर्मी से चारों ओर का जल सूख गया है।
3. दिवसकर [ दीव्यतेऽत्र दिव् + असच् किक्व् + करः ] सूर्य ।
दिवसकरमयूखैर्बोध्यमानं प्रभाते वरयुवतिमुखाभं पङ्कजं जृम्भतेऽद्य । 3/25 प्रातः काल जब सूर्य अपनी किरणों से कमल को जगाता है, तब वह कमल सुंदरी युवती के मुख के समान खिल उठता है।
4. भानु [भा + नु] सूर्य, प्रकाश, चमक, प्रकाश किरण ।
विशुष्ककण्ठोद्गतसीकराम्भसो गभस्तिभिः भानुमतोऽनुतापितः । 1/15 पते हुए सूर्य की किरणों से तपे हुए और प्यास के कारण सूखे कंठ वाले हाथी बादल की फुहारों की तलाश में ।
निरुद्धवातायनमन्दिरोदरं हुताशनो भानुमतो गभस्तयः । 5/2
अपने घरों के भीतर खिड़कियाँ बंद करके, आग तापकर, सूर्य की किरणों की धूप खाकर दिन बिताते हैं ।
5. रवि [रु+ इ] सूर्य ।
रवेर्मयूखैरभितापितो भृशं विदह्यमानः पथितप्तपांसुभिः । 1 / 13
सूर्य की किरणों से एकदम तपा हुआ और पैंड़े की गर्म धूल से झुलसा हुआ । रवेर्मयूखैरभितापितो भृशं वराहयूथो विशतीव भूतलम् । 1/17
सूर्य की किरणों से एकदम झुलसा हुआ जंगली सुअरों का झुंड ऐसा लगता है मानो धरती में घुसा जा रहा हो।
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रविप्रभोद्भिन्नशिरोमणिप्रभा विलोलजिह्वाद्वयलीढमारुतः । 1/20 जिसकी मणि सूर्य की चमक से और भी चमक उठी है, वह अपनी लपलपाती हुई दोनों जीभों से पवन पीता जा रहा है।
6. विवस्वत [ विशेषेण वस्ते आच्छादयति वि + वस् + क्विप् + मतुप् ]
सूर्य ।
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