________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
866
कालिदास पर्याय कोश प्यास के मारे भैंसों का समूह पहाड़ की गुफा से निकल-निकलकर जल की
ओर लपका चला जा रहा है। नवजलकणसेकादुद्गतां रोमराजी ललितवलिभिरङ्गैर्मध्यदेशैश्च नार्यः। 2/26 स्त्रियों के पेट पर दिखाई देने वाली सुंदर तिहरी सिकुड़नों पर जब वर्षा के जल की फुहार पड़ती है, तो वहाँ के नन्हें-नन्हें रोएँ खड़े हो जाते हैं। नवजलकणसङ्गाच्छीततामादधानः कुसुमभरनतानां लासकः पादपानाम्। 2/27 वर्षा के नये जल की फुहारों से ठंडा बना हुआ पवन, फूलों के बोझ से झुके हुए पेड़ों को नचा रहा है। जलभरनमितानामाश्रयोऽस्माकमुच्चैरयमिति जलसेकैस्तोयदास्तोयनम्राः। 2/28 ये पानी के बोझ से झुके हुए बादल, अपने ठंडे जल की फुहार से मानो यह समझकर बुझा रहे हैं, कि जब हम पानी के बोझ से लदकर आते हैं तो यही हमें सहारा देता है। काशैर्महीशिशिरदीधितिना रजन्यो हंसैर्जलानि सरितां कुमुदैः सरांसि। 3/2 काँस की झाड़ियों ने धरती को, चंद्रमा ने रातों को, हंसों ने नदियों के जल को, कमलों ने तालाबों को। वापीजलानां मणिमेखलानां शशाङ्कभासां प्रमदाजनानाम्। 6/4 बावड़ियों के जल, मणियों से जड़ी करधनियाँ, चाँदनी, स्त्रियाँ। तोय - [तु + विच् तवे पूत्यै याति - या + क नि० साधुः] पानी, जल। वनान्तरे तोयमिति प्रधाविता निरीक्ष्य भिन्नाञ्जन संनिभं नभः। 1/11 वे धोखे में उन जंगलों की ओर दौड़े जा रहे हैं, जहाँ के आँजन के समान नीले आकाश को ही वे पानी समझ बैठे हैं। विवस्वता तीक्ष्णतरांशुमालिनां सपङ्कतोयात्सरसोऽभितापितः। 1/18 धूप से तपे हुए (मेंढक), गदले जल वाले पोखरे से बाहर निकल-निकल कर।
For Private And Personal Use Only