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ऋतुसंहार
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हारों की लटकती हुई झालरों से सजे हुए अपने गोल-गोल स्तन प्रेमी की
छाती पर रखकर ।
भ्रमति गवययूथः सर्वतस्तोयमिच्छञ्
शरभकुला जिह्यं प्रोद्धरत्यम्बु कूपात् । 1/23
पशुओं के झुंड चारों ओर पानी की खोज में घूम रहे हैं और शरभों का झुंड एक कुएँ से गटागट पानी पीता जा रहा है।
व्योम क्वचिद्रजतशङ्ङ्खमृणालगौरैः
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त्यक्ताम्बुभिर्लघुतया शतशः प्रयातैः । 3/4
चाँदी, शंख और कमल के समान उजले जो सहस्रों बादल पानी बरसाने से हलके होकर आकाश में इधर-उधर घूम रहे हैं ।
2. अंभ - [ आप (अम्भ) + असुन् ] जल ।
विगतकलुषमम्भः श्यानपङ्का धरित्री
विमलकिरणचन्द्रं व्योम ताराविचित्रम् | 3 / 22
उत्कण्ठयत्यतितरां पवनः प्रभाते पत्रान्तलग्नतुहिनाम्बुविधूयमानः । 3/15 प्रात: काल पत्तों पर पड़ी हुई ओस के जल की बूँदें गिराता हुआ बह रहा पवन किसे मस्त नहीं बना देता।
पानी का गँदलापन दूर हो गया है, धरती पर का सारा कीचड़ सूख गया है और आकाश में स्वच्छ किरणों वाला चंद्रमा और तारे निकल गए हैं।
3. उदक - [ उन्द् + ण्वुल् नि० नलोपः] पानी, जल ।
ससाध्वसैर्भेककुलैर्निरीक्षितं प्रयाति निम्नाभिमुखं नवोदकम् । 2 / 13 बरसाती पानी ढाल से बहा जा रहा है और बेचारे मेंढक उसे देख-देखकर डरे जा रहे हैं ।
जल - [जल् + अक् ] पानी ।
प्रवृद्धतृष्णोपहताजलार्थिनो न दन्तिनः केसरिणोऽपि विभ्यति । 1/15 जो हाथी प्यास से बेचैन होकर पानी की खोज में इधर-उधर घूम रहे हैं, वे इस समय सिंह से भी नहीं डर रहे हैं।
तृषाकुलं निःसृतमद्रिगह्वरादवेक्षमाणं महिषीकुलं जलम् । 1/21
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