Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 02
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 399
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 864 www. kobatirth.org कालिदास पर्याय कोश आजकल वन तो और भी डरावने लगने लगे हैं क्योंकि सूर्य की गरमी से चारों ओर का जल सूख गया है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिणतदलशाखानुत्पतन् प्रांशुवृक्षान् भ्रमति पवनधूतः सर्वतोऽग्निर्वनान्ते । 1 / 26 पवन से भड़काई हुई आग उन ऊँचे वृक्षों पर उछलती हुई वन में चारों ओर घूम रही है, जिनकी डालियों के पत्ते पक-पककर झड़ते जा रहे हैं। नद्यो घना मत्तगजा वनान्ताः प्रियाविहीनाः शिखिनः प्लवङ्गाः । 2/19 नदियाँ, बादल, मस्त हाथी, जंगल, अपने प्यारे से बिछुड़ी हुई स्त्रियाँ, मोर और बंदर | सितमिव विद्यते सूचिभिः केतकीनां नवसलिलनिषेकच्छिन्नतापो वनान्तः । 2/24 मानो वर्षा के नये जल से गर्मी दूर हो जाने पर जंगल मगन हो उठा हो । केतकी की उजली कलियों को देखकर ऐसा लगता है, मानों जंगल खिलखिलाकर हँस रहा हो । सप्तच्छदैः कुसुमभारनतैर्वनान्ताः शुक्लीकृतान्युपवनानि च मालतीभिः 13/2 फूलों के बोझ से झुके हुए छतिवन के वृक्षों ने जंगल को और मालती के फूलों ने फुलवारियों को उजला बना डाला है। 5. शाखि - [ शाखा + इनि] शाखाधारी, जंगल । मुदितइव कदम्बैर्जातपुष्पैः समन्तात्पवनचलितशाखैः शाखिभिर्नृत्यतीव । 2/24 वन में चारों ओर खिले हुए कदंब के फूल ऐसे लग रहे हैं, पवन से झूमती हुई शाखाओं को देखकर ऐसा लगता है, मानो पूरा का पूरा जंगल नाच उठता है। वारि 1. अंबु [ अम्ब + उण् ] जल । - सचन्दनाम्बुव्यजनोद्भवानिलैः सहारयष्टिस्तनमण्डलार्पणैः । 1/8 चंदन में बसे हुए ठंडे जल से भीगे हुए पंखों की ठंडी बयार झलकर या मोतियों For Private And Personal Use Only

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