Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 02
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 403
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 868 कालिदास पर्याय कोश जिनके पति परदेस चले गए हैं, वे स्त्रियाँ जब जल से रहित (सूखे हुए) मार्ग को देखती हैं तो पतियों के आने की बाट जोहती हुई सोचती हैं कि। 7. वारि - [वृ + इञ्] जल, पानी। प्रचण्डसूर्यः स्पृहणीयचन्द्रमाः सदावगाहक्षतवारिसंचयः। 1/1 धूप कड़ी हो गई है और चंद्रमा बड़ा सुहावना लगता है। कोई चाहे तो आजकल दिन-रात गहरे जल में स्नान कर सकता है। विलोचनेन्दीवरवारिबिन्दुभिर्निषिक्तबिम्बाधरचारु पल्लवाः। 2/12 अपने बिंबाफल जैसे लाल और नई कोंपलों जैसे कोमल होठों पर अपनी कमल जैसी आँखों से आँसू (जल) बरसाती हुई। नेत्रोत्सवो हृदयहारिमरीचिमाल: प्रह्लादकः शिशिर सीकरवारिवर्षी । 3/9 सबकी आँखों को भला लगने वाले जिस चंद्रमा की किरणें सबको बरबस अपनी ओर खींच लेती हैं, वही सुहावना और ठंडी फुहार बरसाने वाला चंद्रमा। स्फुटकुमुदचितानां राजहंसाश्रितानां मरकतमणिभासा वारिणा भूषितानाम्। 3/21 जिनमें नीलम के समान चमकता हुआ जल भरा हुआ हो, जिनमें एक-एक राजहंस बैठा हुआ हो और जिनमें यहाँ-वहाँ बहुत से कुमुद खिले हुए हों। सलिल-[सलति गच्छति निम्नम् - सल् + इलच्] पानी, जल। कमलवनचिताम्बुः पाटलामोदरम्यः सुखसलिलनिषेकः सेव्यचन्द्रांशुहारः। 1/28 कमलों से भरे हुए और खिले हुए पाटल की गंध में बसे हुए जल में स्नान करना बहुत सुहाता है और ऐसे समय में चंद्रमा की चांदनी और मोती के हार बहुत सुख देते हैं। निपातयन्त्यः परितस्तटदुमान्प्रवृद्धवेगैः सलिलैरनिर्मलैः। 2/7 अपने मटमैले पानी की बाढ़ से जहाँ-तहाँ अपने किनारे के वृक्षों को ढहाती हुई वेग से दौड़ी हुई। हसितमिव विधत्ते सूचिभिः केतकीनां नवसलिलनिषेकच्छिन्नतापो वनान्तः। 2/24 For Private And Personal Use Only

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