Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 02
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 394
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ऋतुसंहार www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आपक्वशालिरुचिरानतगात्रयष्टिः प्राप्ता शरन्नवधूरिव रूपरम्या । 3 / 1 के हुए धान के मनोहर शरीर वाली शरद ऋतु नई व्याही हुई रूपवती बहू के समान आ पहुँची है। नीलोत्पलैर्मदकलानि विलोचनानि 859 भ्रूविभ्रमाश्च रुचिरास्तनुभिस्तरङ्गैः । 3/17 नीले कमलों ने उनकी मदभरी आँखों को और छोटी लहरियों ने उनकी भौंहों की सुंदर मटक को हरा दिया है। दन्तावभासविशदस्मितचन्द्रकान्तिं कङ्केलिपुष्परुचिरा नवमालती च ।3/18 कंकेलि तथा नई मालती के सुंदर फूलों ने दाँतों की चमक से खिल उठने वाली मुस्कराहट की चमक को लजा दिया है। अधररुचिरशोभां बन्धुजीवे प्रियाणां पथिकजन इदानीं रोदिति भ्रान्तचित्तः । 3/26 बंधुजीव के फूलों में उनके निचले ओठों की चमकती हुई सुंदरता की चमक पाते हैं, तब वे परदेसी सब सुध-बुध भूलकर रोने लग जाते हैं। कुमुदरुचिरकान्तिः कामिनीवोन्मदेयं प्रतिदिशतु शरद्वश्चेतसः प्रीतिमग्रयाम् । 3 / 28 खिले हुए उजले कमल के सुंदर मुख वाली जो कामिनी के समान मस्त शरद् ऋतु आई है, वह आप लोगों के मन में नई नई उमंगे भरे । रुचिरकनककान्तीन्मुञ्चतः पुष्पराशीन् - मृदुपवनविधूतान्पुष्पिताँश्चूतवृक्षान् । 6/30 मंद-मंद पवन के झोंके से हिलते हुए और सुंदर सुनहले बौर गिराने वाले, बौरे हुए आम के वृक्षों को । 7. ललित [लल् + क्त] प्रिय, सुंदर, मनोहर । व्रजतु तव निदाघः कामिनीभिः समेतो निशिसुललितगीते हर्म्यपृष्ठे सुखेन । 1/28 वह गर्मी की ऋतु आपकी ऐसी बीते कि रात को आप घर की छत पर लेटे हों, सुंदरियाँ आपको घेरे बैठी हों, और मनोहर संगीत छिड़ा हुआ हो । For Private And Personal Use Only

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