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ऋतुसंहार
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3. शोभ् - चमकना, दिखाई देना, प्रकट होना।
सदामनोज्ञं स्वनोदुत्सुकं विकीर्ण विस्तीर्णकलापशोभितम्। 2/6 सदा मीठी बोली बोलने वाले, गरजते हुए बादलों की शोभा पर रीझकर मगन हो उठने वाले और अपने पंख खोलकर फैलाने से सुहावने लगने वाले।
रेणु
1. पांसु - [पंस् (श्) + कु, दीर्घः] धूल, गर्द, चूरा, धूलकण।
रवेर्मयूखैरभितापितोभृशं विदह्यमानः पथितप्तपांसुभिः। 1/13
धूप से एकदम तपा हुआ और पैंड़े की गर्म धूल से झुलसा हुआ। 2. रज - [ रञ्ज + असुन्, न लोपः] धूल, रेणु, गर्द।
विपाण्डुरं कीटरजस्तृणान्वितं भुजंगवद्वक्रगति प्रसर्पितम्। 2/13 छोटे-छोटे कीड़े, धूल और घास को बहाता हुआ मटमैला बरसाती पानी, साँप
के समान टेढ़ा-मेढ़ा घूमता हुआ। 3. रेणु - [रीयते: णुः नित्] धूल, धूलकण, रेत।
असह्यवातोद्धतरेणुमण्डला प्रचण्डसूर्यातपतापिता मही। 1/10 आँधी के झोंकों से उठी हुई धूल के बवंडरों वाली और कड़ी धूप की लपटों से तपी हुई धरती।
लोहित
1. अरुण - [ऋ + उनन्] लाल, कुछ-कुछ लाल।
भिन्नाञ्जनप्रचयकान्ति नभो मनोज्ञं बन्धूकपुष्परजसाऽरुणिता च भूमिः। 3/5 घुटे हुए आँजन की पिंडी जैसा नीला आकाश, दुपहरिया के फूलों से लाल बनी हुई धरती। कुर्वन्तिहंसविरुतैः परितोजनस्य प्रीतिं सरोरुहरजोरुणितास्तटिन्यः। 3/8 जिन नदियों का जल कमल के पराग से लाल हो गया है, जिन पर हंस कूज
रहे हैं।
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