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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋतुसंहार 861 3. शोभ् - चमकना, दिखाई देना, प्रकट होना। सदामनोज्ञं स्वनोदुत्सुकं विकीर्ण विस्तीर्णकलापशोभितम्। 2/6 सदा मीठी बोली बोलने वाले, गरजते हुए बादलों की शोभा पर रीझकर मगन हो उठने वाले और अपने पंख खोलकर फैलाने से सुहावने लगने वाले। रेणु 1. पांसु - [पंस् (श्) + कु, दीर्घः] धूल, गर्द, चूरा, धूलकण। रवेर्मयूखैरभितापितोभृशं विदह्यमानः पथितप्तपांसुभिः। 1/13 धूप से एकदम तपा हुआ और पैंड़े की गर्म धूल से झुलसा हुआ। 2. रज - [ रञ्ज + असुन्, न लोपः] धूल, रेणु, गर्द। विपाण्डुरं कीटरजस्तृणान्वितं भुजंगवद्वक्रगति प्रसर्पितम्। 2/13 छोटे-छोटे कीड़े, धूल और घास को बहाता हुआ मटमैला बरसाती पानी, साँप के समान टेढ़ा-मेढ़ा घूमता हुआ। 3. रेणु - [रीयते: णुः नित्] धूल, धूलकण, रेत। असह्यवातोद्धतरेणुमण्डला प्रचण्डसूर्यातपतापिता मही। 1/10 आँधी के झोंकों से उठी हुई धूल के बवंडरों वाली और कड़ी धूप की लपटों से तपी हुई धरती। लोहित 1. अरुण - [ऋ + उनन्] लाल, कुछ-कुछ लाल। भिन्नाञ्जनप्रचयकान्ति नभो मनोज्ञं बन्धूकपुष्परजसाऽरुणिता च भूमिः। 3/5 घुटे हुए आँजन की पिंडी जैसा नीला आकाश, दुपहरिया के फूलों से लाल बनी हुई धरती। कुर्वन्तिहंसविरुतैः परितोजनस्य प्रीतिं सरोरुहरजोरुणितास्तटिन्यः। 3/8 जिन नदियों का जल कमल के पराग से लाल हो गया है, जिन पर हंस कूज रहे हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020427
Book TitleKalidas Paryay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhuvannath Shukl
PublisherPratibha Prakashan
Publication Year2008
Total Pages441
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size15 MB
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