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कालिदास पर्याय कोश
नवजलकणसेकादुद्गतां रोमराजीं ललितवलिभिङ्गैर्मध्यदेशैश्च नार्यः । 2 / 26
स्त्रियों के पेट पर दिखाई पड़ने वाली सुंदर तिहरी सिकुड़नों पर जब वर्षा की नई फुहारें पड़ती हैं, तो वहाँ के नन्हें-नन्हें रोएँ खड़े हो जाते हैं। हंसैर्जिता सुललिता गतिरङ्गनानामम्भोरुहैर्विकसितैर्मुखचन्द्रकान्तिः । 3/17 हंसों ने सुंदरियों की मनभावनी चाल को, कमलिनियों ने उनके चंद्रमुख की चमक को हरा दिया है ।
कूर्पासकं परिदधाति नखक्षताङ्गी
व्यालम्बिनीलललितालक कुञ्चिताक्षी । 4/17
नखों के घावों से भरे हुए अंगों वाली और लटकाती हुई सुंदर अलकों से ढकी हुई आँखों वाली स्त्री अपनी चोली पहनने लगी है।
8. सुभग [ सु + भग] प्रिय, सुंदर, मनोहर, मनोरम ।
चूतद्रुमाणां कुसुमान्वितानां ददाति सौभाग्यमयं वसन्तः । 6/4
वसंत के आने से मंजरी से लदी आमों की डालें और भी सुहावनी लगने लगी हैं।
वायुर्विवाति हृदयानि हरन्नराणां नीहारपातविगमात्सुभगोवसन्ते। 6/24 वसंत में पाला तो पड़ता नहीं, इसलिए सुंदर वसंती पवन लोगों का मन हरता हुआ बह रहा है।
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राज्
1. राज्- चमकना, जगमगाना, प्रतीत होना, दिखाई देना ।
निशा: शशाङ्कक्षतनीलराजयः क्वचिद्विचित्र जलयन्त्रमन्दिरम् । 1/2 चारों ओर खिले हुए चंद्रमा की चाँदनी छिटकी हुई हो, रंग-बिरंगे फव्वारों के तले लोग बैठे हुए हों ।
2. विभा [ वि + भा] चमकना, दिखाई देना, प्रकट होना।
विभाति शुक्लेतररत्नभूषिता वराङ्गनेव क्षितिरिन्द्रगोपकैः । 2/5
वीर बहूटी से छाई हुई धरती उस नायिका जैसी दिखाई दे रही है, जो धौले रत्न छोड़कर और सभी रंग के रत्नों वाले आभूषणों से सजी हई है।